06:41 PM, 18-Mar-2022
होली की पौराणिक कथा-
आज हम आपको होली क्यों मनाई जाती है और इससे जुड़ी पौराणिक कहानी आपको बतायेंगे। कहते है हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत में एक राजा था जो एक दानव की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मार दिया था। इसलिए सत्ता पाने के लिए राजा ने वर्षों तक प्रार्थना की। अंत में उन्हें एक वरदान दिया गया। लेकिन इसके साथ ही हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानने लगा और अपने लोगों से उसे भगवान की तरह पूजने को कहा।
क्रूर राजा का प्रहलाद नाम का एक जवान बेटा था, जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। प्रहलाद ने कभी अपने पिता के आदेश का पालन नहीं किया और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। राजा इतना कठोर था कि उसने अपने ही बेटे को मारने का फैसला किया, क्योंकि उसने उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया था।इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से पूछा, जो आग से प्रतिरक्षित थी, उसकी गोद में प्रहलाद के साथ अग्नि की एक चिता पर बैठना था। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी। लेकिन उनकी योजना प्रहलाद के रूप में नहीं चली, जो भगवान विष्णु के नाम का पाठ कर रहे थे, सुरक्षित थे, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई। इसके बाद, भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया। इसलिए हर वर्ष होलिका जलाई जाती है और अगले दिन हिरण्यकश्यप जैसे क्रूर राजा से आजादी मिलने पर प्रजा खुशी मनाती है और एक दूसरे को रंग लगाती है।
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06:00 PM, 18-Mar-2022
अब बात करते हैं नीले रंग की, नीला रंग जल और आकाश का रंग है। जिसके चलते यह रंग शीतलता और स्थिरता का प्रतीक है। नीला रंग शांति और गंभीरता प्रदान करता है। यदि आप नीले रंग के गुलाल से होली खेलते हैं तो इससे शनि के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और साथ ही यह रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है। गुलाबी रंग सभी को बहुत अच्छा लगता है क्योंकि यह आकर्षण का प्रतीक माना गया है। कहते हैं यदि प्रेमी और प्रेमिका, पति और पत्नी गुलाबी रंग से होली खेलते हैं तो इससे उनके बीच प्यार बढ़ता है और साथ ही रिश्तों की डोर भी मजबूत होती है।
अब बात करे हरे रंग की तो हरा रंग बहुत ही खास रंग माना गया है। हरा रंग शांति, संपन्नता और जीवन का प्रतीक माना गया है। हरा रंग प्रकृति का रंग है। जिस प्रकार हर ओर हरियाली देखकर मन को सुकून मिलता है उसी प्रकार हरे रंग के गुलाल से होली खेलने से मन को सुकून मिलता है और सुख समृद्धि भी प्राप्त होती है।
05:26 PM, 18-Mar-2022
होली में रंगों का महत्व।
होली का पर्व रंगों का पर्व है। इस दिन सभी लोग अबीर और गुलाल से होली खेलते हैं। बाज़ारों में अलग अलग रंग का गुलाल मिलता है। जिनमें से पांच रंगों का गुलाल सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है वह हैं लाल, पीला, हरा, गुलाबी और नीला। आज हम आपको इन पांच रंगों का महत्व बताएंगे।
सबसे पहले बात है लाल रंग की, लाल रंग को अग्नितत्व का प्रतीक माना जाता है। सभी शुभ कार्यों में इसका प्रयोग होता है। लाल रंग उत्साहवृद्धि, गर्मी और जोश से जोड़कर देखा जाता है। यदि आप लाल रंग का प्रयोग होली के मौके पर करते हैं तो आपके धन में वृद्धि होती है और आपके अंदर ऊर्जा का संचार होता है।
होली के गुलालो में पीले रंग उसका भी काफी इस्तेमाल होता है। पीले रंग को प्रकृति, अध्यात्म और ज्योति से जोड़कर देखा जाता है। देखा गया है कि जब मनुष्य पीले रंग की ओर देखता है तो आँखों के साथ साथ उसके मन और मस्तिष्क को भी शांति प्राप्त होती है। कहते हैं यदि आप होली पीले रंग के गुलाल से खेलते हैं तो आपको आरोग्य, ऐश्वर्य और यश की प्राप्ति होती है।
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05:01 PM, 18-Mar-2022
लठमार होली से जुड़ी एक पौराणिक कथा-
हिन्दू धर्म मे यू तो पूरे वर्ष कई त्योहार आते है। सभी पर्वो की अपनी विशेष मान्यता और महत्व है। वही सभी पर्वो को मनाने के कारण भी है। साथ साथ सभी पर्व मानव समाज को कोई न कोई सीख देते है। जिससे मनुष्य अपने जीवन और समाज को बेहतर बना सकता है। लेकिन होली और दीपावली यह दोनों पर्व हिन्दुओ के सबसे बड़े पर्व माने जाते है। वैसे तो हिन्दू सभी पर्व पूरी श्रद्धा और हर्षउल्लास के साथ मनाते है। यह दोनों पर्व पूरे भारत मे सभी लोग बड़े हर्षउल्लास के साथ मनाते है।
सभी जगह इनकी छटा देखते बनती है। बात करे होली की तो इस वर्ष यह त्योहार 17 और 18 मार्च को बनाया जायेगा। होली का पर्व भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़ा है। कहते है इस पर्व का आरंभ द्वापर योग में स्वयं राधा रानी और श्री कृष्ण ने खेल कर आरम्भ किया था। यही कारण है कि मथुरा, वृंदावन और बरसने मे इस दिन का विशेष महत्व होता है। यहां पर तो यह त्योहार कई दिन पहले से आरंभ हो जाता है।मथुरा और बरसने में भिन्न भिन्न होली खेली जाती है जिसमे से सबसे महत्वपूर्ण है लट्ठमार होली। किसी ने देखी हो या न देखी हो नाम सभी ने सुना होगा। कहते है यह होली देखने सिर्फ भारत से ही नही बल्कि देश विदेश से लोग बरसने जाते है।
लट्ठमार होली सबसे पहले राधा और कृष्ण ने खेली थी। इसके पीछे की पौराणिक कथा आपको बताते है। कहते है कि कृष्ण जी अपने सखाओं के साथ राधा जी और उनकी सखियों को परेशान करने बरसाने जाया करते थे। तब एक बार होली के अवसर पर राधा रानी और उनकी सखियों ने योजना बनाई और वह सभी लट्ठ लेकर खड़ी हो गयी जब कान्हा और उनके सखा उन्हें रंग लगाने पहुँचे तो राधा और उनकी सखियों ने उनपर लट्ठ मारने आरम्भ कर दिए। जिनसे बचने के लिए कान्हा और उनके सखाओं ने ढाल की सहायता ली। तभी से यह लट्ठमार होली की परंपरा चली आ रही है। इस होली महिलाये पुरुषों पर लट्ठ मारती है और पुरुषों को ढाल से उनके लट्ठ की मार से बचना होता है।इसलिए इसे लट्ठमार होली कहते है।
कुमाऊं की होली की अपनी सांस्कृतिक विशेषता
04:30 PM, 18-Mar-2022
जानें कलकत्ता में कैसे मनाई जाती है होली-
कलकत्ता से करीब 150 किलोमीटर दूर बीरभूम में स्थित शांति निकेतन की होली भी काफी प्रसिद्ध है। कहते है इसकी स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह होली विश्व भारती यूनिवर्सिटी में खेली जाती है। यहाँ पर छात्र आने वाले सैलानियों के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं और उनके साथ होली खेलते हैं। इस त्योहार की बंगाल की संस्कृति में एक खास अहमियत है। यदि आप भी इस बार होली को एन्जॉय करना चाहते हैं तो। यह स्थान आपके लिए बिल्कुल उचित है
जानें बरसाने में कैसे मनाई जाती है होली-
बरसाने की लठमार होली और वृंदावन की फूलों वाली होली भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है। इतना ही नहीं इन दोनों होलियों का आनंद लेने देश विदेश से लोग आते हैं। बरसाने की लठमार होली की शुरुआत होली से एक सप्ताह पहले हो जाती है वही मथुरा वृंदावन में खेली जाने वाली फूलों की होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है और फिर एक सप्ताह तक यह होली खेली जाती है। यह होली वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में खेली जाती है इसमें भक्त गुलाल के साथ साथ फूलों की पंखुड़ियों का इस्तेमाल करते हैं।
अपनी जन्म कुंडली से जानिये अपनी राशि - फ्री
04:00 PM, 18-Mar-2022
जानिए देश के विभिन्न राज्यों में कैसे मनाई जाती है होली।
होली का पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सभी जगह अपने सांस्कृतिक परिवेश के अनुसार यह पर्व मनाया जाता है। कई जगह की होली काफी प्रसिद्ध हैं। इस बार होली पर लॉन्ग वीकेंड की छुट्टियां मिल रही है।
यदि ऐसे में आप भी कर रहे है प्लान होली पर कही बहार जाने का तो आज हम आपको कुछ जगहों की होली के बारे में बताएंगे जहाँ की होली काफी प्रसिद्ध है। इन जगहों पर होली मनाने लोग दूर दूर से आते हैं।
जानें उदयपुर में कैसे मनाई जाती है होली-
यदि आप भी शाही अंदाज में होली मनाने की सोच रहे हैं। तो आपको उदयपुर जरूर जाना चाहिए। यहाँ पर होली की पूर्व संध्या पर खास तरह से होली मनाई जाती है जिसे शाही होली कहते हैं। यहाँ पर होली बिलकुल शाही अंदाज में सेलिब्रेट की जाती है।
इस दौरान शाही निवास से मानिक चौक तक शाही जुलूस निकलता है। इस जुलूस में घोड़े, हाथी से लेकर शाही बैंड भी शामिल होता है जिसे यह एक अलग ही पहचान दे देता है। यदि आप भी यहाँ आना चाहते हैं तो आप रेल या हवाई मार्ग का सफर करके आ सकती है।
03:18 PM, 18-Mar-2022
जानें होली के रंगों से कैसे पाएं लाभ, माता लक्ष्मी हो जाएंगी प्रसन्न।
होली के त्योहार रंग,नृत्य और गान का त्योहार है। इसमें रंगों का खास महत्व रहता है। रंगों का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। होली पर ज्योतिष और वास्तु के अनुसार करें रंगों का उपयोग तो बहुत हीं लाभ होगा। तो आइए जानते हैं ज्योतिष होली के रंगों के बारे में क्या कहता है।
रंगोली:
होली के दिन होलिका दहन के आसपास और घर के बाहर रंगोली बनाने का प्रचलन है। होली का डांडा जहां गाड़ा जाता है वहां और घर के द्वार के बाहर और भीतर रंगोली बनाते हैं। रंगोली बनाने के लिए पीला,गुलाबी,हरा,और लाल रंग का उपयोग करें क्योंकि ये रंग मां लक्ष्मी को प्रिय है। इससे उनकी कृपा बनी रहेगी और घर का वास्तु दोष भी दूर होगा।
गृह दोष दूर करने हेतु:
गह दोष दूर कर घर में पॉजिटिव शक्ति बढ़ाने के लिए होली के दिन घर के बाहर हमें हल्के नीले, सफेद, पीले, नारंगी, क्रीम आदि लाइट रंगों का उपयोग करना चाहिए परंतु घर के भीतर हर कमरें और उसकी दीवारों का रंग तो वास्तु अनुसार हीं चयन करना चाहिए, क्योंकि रंगों का हमारे जीवन पर बहुत ज्यादा असर होता है।
गृह दिशा:
होली के दिन घर की दिशा के अनुसार गुलाल या रंगों का उपयोग करें । जैसे यदि आपका मकान पूर्वमुखी है तो लाल,हरा,गुलाबी, नारंगी रंग का उपयोग करें। इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहेगी। यदि उत्तरमुखी भवन है तो आसमानी,पीला,और नीले रंग का प्रयोग कर सकते हैं। इससे घर में उन्नति और नए अवसरों को बढ़ावा मिलेगा।
इस होली भेजें अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को ये खूबसूरत सन्देश।
02:54 PM, 18-Mar-2022
होली के दिन इन चीज़ों का दान करने से, सुख-शांति के साथ होगा माता लक्ष्मी का वास।
होली के शुभ अवसर पर यदि आप इन चीज़ों का दान करेंगे, तो आपके जीवन में चली आ रही सभी विपदाएं और संकट दूर होजाएंगे।
चलिए जानते हैं कौनसी हैं वह चीज़ें।
होली के दिन गरीबों और ज़रुरत मंदों की सहायता अवश्य करें। उनको वस्त्र, रंग और भोजन दान करें।
ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।
होली के दिन आप गुरु दान दें एवं अपने माता पिता को उपहार दें, ऐसा करने से देवगुरु बृहस्पति प्रसन्न होंगे और अपनी कृपा आप पर बनाये रखेंगे।
होली के दिन गाय की सेवा करें और उनको हरा चारा खिलाएं। ऐसा करने से आपको सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होगा और आपके सभी संकट दूर होजाएंगे।
होली के दिन करे यह उपाय, जीवन से सभी विघ्न होगे दूर |
02:05 PM, 18-Mar-2022
जानें होली के दिन कोनसा रंग पहनना होगा शुभ।
होली के दिन सफेद रंग के कपड़े पहने जाते हैं क्योंकि यह चंद्रमा का प्रतीक है। सफेद रंग के कपड़े आपके अंदर विनम्रता और सहनशीलता लाते हैं। होली खेलने के लिए गहरे रंग के कपड़े का उपयोग न करें।
1.हरा: हरा रंग जहां माता दुर्गा और बुध ग्रह का रंग है वही यह माता लक्ष्मी का भी रंग है। यह रंग सौभाग्य का भी माना जाता है। प्राकृति का रंग हरा ही हैं।
2.लाल: लाल रंग माता लक्ष्मी का रंग है। यह मंगलकारी, सौभाग्य, उत्साह, ऊर्जा, हर्ष, सेहत और प्रसन्नता के साथ हीं पराक्रम का भी रंग है।
लाल टीका शौर्य और विजय का प्रतीक है।
3.पीला: यह रंग ज्ञान और विद्या, सुख, शांति, धन, बुद्धि, समृद्धि, अध्यात्म, शिक्षा, धर्म और देवी देवताओं का रंग है।
4. गुलाबी: गुलाबी रंग को भाग्य, प्रेम और सौभाग्य का सूचक माना जाता है।इस रंग से सकारात्मक वातावरण बनता है।
5. केसरिया: यह धर्म, ज्ञान, त्याग, तपस्या और वैराग्य का रंग है। यह रंग शुभ संकल्प का सूचक है।यह वीरता, बलिदान का भी प्रतीक है।
होली पर वृंदावन बिहारी जी को चढ़ाएं गुजिया और गुलाल।
01:51 PM, 18-Mar-2022
डोल पूर्णिमा पर सांस्कृतिक प्रेमियों का आकर्षण होता है शांति निकेतन
आधिकारिक तौर पर, बसंत उत्सव पहली बार 1920 में शांतिनिकेतन में शुरू हुआ था. आज भी, यह परंपरा अपरिवर्तित बनी हुई है, हालांकि अब के वर्षों से उत्सव में कुछ बदलाव हुए हैं लेकिन उसके बावजूद इसके रंग में कोई बदलाव नही आता है. बैतालिक डोल पूर्णिमा से एक रात पहले होता है अगला बैतालिक अगली सुबह करीब 5 बजे होता है. सुबह 7 बजे के आसपास, विश्व भारती के प्रोफेसर और छात्र विश्वविद्यालय के परिसर में 'खोल दार खोल लागलो जे डोल' गाते हुए नीचे आते हैं, फिर पूरी सभा एक विशेष स्थान पर जाती है जहाँ संगीत और नृत्य का एक सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है. रंग खेला या रंगों के त्योहार की औपचारिक घोषणा भी वहीं से की जाती है. शांतिनिकेतन में होली उत्सव पर भीड़ में कोई अराजकता नहीं होती है. आगंतुकों का स्वागत गालों पर लाल अबीर लगाकर किया जाता है. उत्सव की शुरुआत टैगोर द्वारा होली के एक प्रसिद्ध बंगाली गीत "ऊ रे गृहोबाशी ... खोल द्वार खोल ... लग्लो जे डोल" पर नृत्य के साथ हुई, इसके बाद बच्चों द्वारा "ओरे भाई ... फागुन लेगेचे बोन बोन" और राधा-कृष्ण नृत्य-नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं. डोल पूर्णिमा की रात, आमतौर पर हर साल टैगोर का एक नृत्य नाटक किया जाता है. रंगों के इस उदात्त उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया भर से पर्यटक शांतिनिकेतन आते हैं. शांतिनिकेतन में बसंत उत्सव देश और दुनिया भर में आकर्षण का केन्द्र होता है.
कुमाऊं की होली की अपनी सांस्कृतिक विशेषता
01:36 PM, 18-Mar-2022
शांतिनिकेतन के बसंत उत्सव की शुरुआत
बंगाल में बसंत का समय आते ही देश ओर दुनिया भर से लोग एक अलग होली का आनंद लेने के लिए टैगोर की भूमि शांति निकेतन पर आते हैं. जहाँ होली या डोल को बसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जहाँ प्रकृति और मानव एक अलग ही मिलन दिखाई देता है. जहां गीत, ताल, नृत्य और पोशाक समय और संस्कृतियों की बाधा को पार करते हुए आत्माओं का मिलन बन जाते हैं. यहां बसंत उत्सव की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी जिसका संबंध जिसका संबंध उनके सबसे छोटे बेटे, समंदरनाथ से खास रुप से जुड़ा है, जो कि बहुत ही कम उम्र में इस दुनिया को छोड़ कर चले गए थे. 18 जनवरी 1907 को शांतिनिकेतन में 'रितु उत्सव' की शुरुआत की थी. बाद में जब इस उत्सव को मनाया, तो यह बहुत अलग तरीके से शुरू हुआ जहाँ उनके आश्रम के छात्रों ने भाग लिया. यह विरासत अभी भी जारी है, यहां पाठ भवन और विश्व भारती दोनों विभागों के छात्र भाग लेते हैं और कला का प्रदर्शन करते हैं. टैगोर के समय में,इस उत्सव के दिन संगीत गाते थे, उन गीतों की सामूहिक धुनें वसंत का अधिक उत्साह के साथ स्वागत करती प्रतीत होती थी. हर आश्रमवासी इस उत्सव को देखने और उसमें भाग लेने के लिए साल बिथी में इकट्ठा होता था.
01:26 PM, 18-Mar-2022
बसंत उत्सव बंगाल में भी उल्लास का पर्व है इस दिन वहां के लोगों की सजावट, पोशाक और सामाजिक ताने बाने में रंगों का जिसमें पीले और लाल रंग का स्पष्ट प्रभुत्व दिखाई देता है. शांति निकेतन की विशिष्ट शैली में बसंत उत्सव की कल्पना सबसे पहले साहित्य कला के पारखी और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी और उन्हीं प्रयास और आशीर्वाद से आज भी यह उत्सव विश्व भारती और रवींद्रभारती विश्वविद्यालय परिसर में एक ही तरीके से मनाया जाता है, और यही पर्व आज शांतिनिकेतन के साथ-साथ बोलपुर क्षेत्रों में और उसके आसपास मनाई जाने वाली होली की विशिष्ट शैली भी बन गया है.
12:43 PM, 18-Mar-2022
होली के रंग शांतिनिकेतन के डोल उत्सव के संग
होली का त्यौहार जीवन में नए रंगों के आगमन का संदेश लेकर आता है, भारत भर के विभिन्न स्थानों पर होली की अपनी अलग ही छाप दिखाई देती है. इसी के अनेकों रंगों का अलग रुप हमें शांति निकेतन में मनाई जाने वाली होली में भी देखने को मिलता है. रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय में होली उत्सव में एक नया आयाम जोड़ने का फैसला किया. इस प्रकार, वह इस तरह से त्योहार मनाने का विचार लेकर आया जिसे आज डोल यात्रा या डोल उत्सव के रूप में भी जाना जाता है. इस उत्सव को रवींद्र बसंत उत्सव के रूप में भी जाना जाता है. आज शांतिनिकेतन में "बसंत उत्सव" न केवल विश्व-भारती विश्वविद्यालय का कार्यक्रम या स्थानीय कार्यक्रम नही है, बल्कि एक भव्य उत्सव का समय होता है. होली को हमेशा जीवंत रंगों और उल्लास से परिभाषित किया गया है, इसमें सांस्कृतिक मेलजोल का एक रंगीन दृष्य शांति निकेतन में दिखाई देता है जहां फूलों की पंखुड़ियों का छिड़काव होली के रंगों को चिह्नित करता है.
12:41 PM, 18-Mar-2022
दरबार में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष कीर्तन और धार्मिक व्याख्यान होते हैं. अंतिम दिन पंज प्यारे के नेतृत्व में एक लंबा जुलूस तख्त केशगढ़ साहिब से शुरू होता है, जो पांच सिख धार्मिक स्थलों में से एक है, और किला आनंदगढ़, लोहगढ़ साहिब, माता जीतोजी जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण गुरुद्वारों से गुजरता है और प्रारंभिक स्थान केशगढ़ साहब पर समाप्त होता है
आनंदपुर साहिब जाने वाले लोगों के लिए, स्थानीय लोगों द्वारा सेवा के रुप में लंगर का आयोजन किया जाता है. आसपास रहने वाले ग्रामीणों द्वारा गेहूं का आटा, चावल, सब्जियां, दूध और चीनी जैसी कच्ची सामग्री उपलब्ध कराई जाती है. खाना पकाने के लिए स्वयंसेवक भी इसमें भक्ति के साथ शामिल होते हैं ओर सेवा कार्यों में अपना योगदान देते हैं. इस दिन बड़ी संख्या में सिख आज भी आनंदपुर साहिब में इकट्ठा होते हैं और एक प्रभावशाली और रंगीन जुलूस निकाला जाता है, जिसमें निहंग अपने पारंपरिक रूप से हथियारों, घुड़सवारी में अपने कौशल दिखाते हैं.
12:37 PM, 18-Mar-2022
पंजाब के आनंदपुर साहिब में आयोजित और अब दुनिया भर के अन्य गुरुद्वारों में दोहराया जाने वाला यह वार्षिक उत्सव दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में होली के त्योहार के बाद सैन्य अभ्यास और नकली लड़ाई के लिए सिखों की एक सभा के रूप में शुरू किया था. यह लोगों को वीरता और रक्षा तैयारियों की याद दिलाता है, जो दसवें गुरु को प्रिय थे, जो उस समय मुगल साम्राज्य और पहाड़ी राजाओं से जूझ रहे थे.
तीन दिवसीय होला मोहल्ला
होला मोहल्ला का उत्सव तीन दिनों तक चलता है . इस तीन दिवसीय भव्य उत्सव पर, नकली लड़ाई, प्रदर्शनियां, हथियारों का प्रदर्शन आदि आयोजित किया जाता है, इसके बाद कीर्तन, संगीत और कविता प्रतियोगिताएं होती हैं. प्रतियोगिताओं में भग लेने वाले लोग साहसी करतब करते हैं, असली हथियारों के साथ नकली मुठभेड़, घुड़सवारी और अन्य प्रकार के बहादुरी के कई अन्य करतब इस दोरान आयोजित किए जाते हैं.