शास्त्रों में ऐसा वर्णित हैं कि एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रहीं थीं तो माता ने अपने बालक गणेश को आदेश दिए कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और इस बात का विशेष ध्यान रखना कि इस कक्ष की ओर कोई प्रवेश ना कर पाएं। अपनी माता का कहा मान कर भगवान गणेश उनकी आज्ञानुसार कक्ष के द्वार पर बैठकर पहरा देने लगें। कुछ समय के पश्चात वहां भगवान शिव आएं और उन्होंने अंदर जानें की बात कहीं तो गणेश ने उन्हें द्वार पर रोक लिया तथा भगवान शिव को अंदर जानें की अनुमति नहीं दी। ऐसा कहा जाता हैं कि भगवान भोलेनाथ को गणेश के सृजन के विषय में कोई जानकारी नहीं थी और महादेव के मार्ग को रोकने का दुस्साहस किया गणेश ने जिसके परिणाम स्वरूप भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
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