मंत्र साधना के लिए क्यों जरूरी है माला? इन 4 गलतियों की वजह से नहीं मिलता मंत्र जाप का फल, जानें
हिंदू धर्म में पूजा करने के कई तरीके होते है। पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना भी बहुत अच्छा माना जाता है। प्रभू की आराधना का सबसे सरल और प्रभावशाली तरीका है नियमित मंत्रों का जाप करना।मंत्रों में इतनी शक्ति होती है ,कि इसके उच्चारण मात्र से दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है। मंत्रों के जाप से घर का वातावरण शांत और खुशनुमा माहौल बना रहता है। लेकिन हम ये नही जानते है की मंत्रों का जाप करने समय हमे किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। मंत्र उच्चारण करते वक्त कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए नहीं तो प्रार्थना व्यर्थ चली जाती है। आइए जानते है की मंत्र उच्चारण करते समय हमे किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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हर देवी देवताओं के पूजा करने के अलग अलग नियम होते है। इसलिए हर मंत्र से कुछ अलग ही शक्ति उत्पन्न होती हैं। जो एक दैवी शक्ति होती है। देवी-देवताओं की पूजा-पाठ करने के लिए कई प्रकार की मालाओं का इस्तेमाल किया जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार मंत्र जाप के लिए माला का उपयोग किया जाता है, क्योंकि माला में 108 दाने होते है।जिस व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त करना होता है , वो नियमित माला से जाप करता है। बस एक बात का ध्यान रखें कि जिस माला से जाप कर रहे है उस माला का दाने 108 हो और दाने एक भी खंडित ना हो। शास्त्रों में विशेष मनोकामना पूर्ति हेतु मंत्रों की निश्चित संख्या का वर्णन किया गया है।
मंत्र जाप के नियम
आइए जानते है मंत्र जाप के नियम क्या क्या होते है।
सबसे पहले आप शुद्ध हो। कपड़े साफ सुथरे हो। माला का जाप हमेशा पूजा स्थल पर नीचे बैठकर करना चाहिए। जब माला जाप करें तो नीचे आसनी जरूर बिछाए। आसनी से संबंधी एक बात का ध्यान रखे की जिस आसानी पर आप काला जाप करते हो उसे कभी भी पैर से ना इधर उधर करें। पैर लगाने से मंत्रों के जाप विफल हो जाते है। साथ ही पैर लगाने से दोष लगता है।
मंत्र का जाप हमेशा अपने ही माला से करें। किसी दूसरे के माला से ना करें। क्योंकि दूसरों से किया गया मंत्रों का जाप सफल नहीं होता है। जाप करने के बाद माला को कभी भी खुटी पर नहीं टांगना चाहिए। ऐसा करने से जाप का फल काम हो जाता है। माला को कभी भी साफ सुथरे कपड़े में बांध कर पूजा स्थल पर ही रखें।
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जब आप मंत्र का जाप करते है तब तर्जनी अंगुली को स्पर्श ना करें। तर्जनी अंगुली को स्पर्श करना शुभ नहीं माना जाता है। इसके साथ ही कुछ मान्यताएं भी है की अगर पूजा के दौरान जम्हाई और छिक आ जाए तो पूजा पूर्ण नहीं माना जाता है। इससे बचने के लिए एक तांबे के पात्र में जल और तुलसी के पत्ते डालकर अपने पास रखें। ऐसी समस्या होने पर इस जल को मस्तक और दोनों नेत्रों से लगा लें, इससे वायु दोष नहीं लगेगा। और जो आप पूजा कर रहे है वो खंडित भी नहीं होगा।
पूजा करने के बाद आसनी को कभी भी ऐसे ही मोड़ कर नहीं रखना चाहिए। आसनी को उठाने से पहले भूमि पर थोड़ा जल गिरा दे फिर आसानी को मोड़ कर रखें। एक बात का ध्यान रखें की जब जल भूमि पर छोड़ते है तब उस जल में से थोड़ा माथे पर और दोनों नेत्रों पर लगा आसन छोड़े। कहते है की इस प्रक्रिया के बाद ही पूजा पूर्ण माना जाता है। इसलिए कभी भी पूजा करने के बाद इस प्रक्रिया को जरूर करें।
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