भगवान शिव की पूजा में क्यों वर्जित है शंख, जानिए क्या है वजह l
माना जाता है कि पूजा स्थल पर शंख रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है और नकारत्मक ऊर्जा का नाश होता है, वहीं शिव की पूजा में शंख रखना वर्जित है परंतु क्या है कारण? आइए जानते हैंl
हिंदू धर्म में हर देवी-देवता के पूजन के कुछ विशेष नियम होते हैं. जिस तरह से भगवान विष्णु को शंख बहुत ही प्रिय है और शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता. धार्मिक दृष्टि से शंख बहुत पवित्र माना जाता है. किसी भी तरह की कोई भी पूजा हो, हर पूजा में आरती करने के बाद शंख के जल को सभी के ऊपर छिड़का जाता है. पर शिव की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं क्या जाता है. आखिर ऐसी क्या वजह है, जिसके चलते महादेव को ना तो शंख जल दिया जाता है और न शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है.जिसका उल्लेख शिवपुराण में मिलता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथाl
पुत्र प्राप्ति का वरदान
शिवपुराण की कथा के अनुसार दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी. उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की थी. दैत्यराज के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा. तब दंभ ने महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा. विष्णु जी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए. इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचुड़ पड़ाl
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शंखचुड ने किया था घोर तप
शंखचुड ने पुष्कर में ब्रह्माजी को खुश करने के लिए घोर तप किया. तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने वर मांगने के लिए कहा. तो शंखचूड ने वर में मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए. ब्रह्माजी ने तथास्तु कहकर उसे श्रीकृष्णकवच दे दिया. इसके बाद ब्रम्हाजी ने शंखचूड के तपस्या से प्रसन्न होकर उसे धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा देकर अंतर्धान हो गए. ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह संपन्न हो गयाl
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शिवजी भी वध करने में असफल हुए
ब्रम्हाजी के वरदान मिलने के बाद शंखचूड अहम में आ गया और उसने तीनों लोकों में अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया. शंखचूड़ से त्रस्त होकर देवताओं ने विष्णु जी के पास जाकर मदद मांगी, लेकिन भगवान विष्णु ने खुद दंभ पुत्र का वरदान दे रखा था. इसलिए विष्णुजी ने शंकर जी की आराधना की, जिसके बाद शिवजी ने देवताओं की रक्षा के लिए चल दिए. लेकिन श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थेl
हड्डियों से हुआ था ,शंख का जन्म
वध करने में सक्षम होने के कारण इसके बाद विष्णु जी ने ब्रम्हाण रुप धारण कर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया. इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशुल से शंखचूड़ का वध किया. ऐसी मान्यता है कि उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ और वो विष्णु जी का प्रिय भक्त था. यही कारण है कि भगवान विष्णु को शंख से जल चढ़ाना बहुत शुभ होता है, जबकि भगवान शंकर ने उसका वध किया था इसलिए शंकर जी की पूजा में शंख का प्रयोग करना वर्जित हैl
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