सावन पर जब न जा पाएं शिवालय तो इस प्रकार करें महादेव की पूजा पूर्ण होंगे सभी मनोरथ
भगवान शिव की पूजा को सनातन धर्म में बहुत ही उत्तम फलदायी माना जाता है. भगवान शिव भक्त की श्रद्धा द्वारा ही प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए कहा भी जाता है कि भगवान शिव का पूजन सभी के लिए सक्षम है और अत्यंत साधारण रुप से भी केवल जलाभिषेक द्वारा ही प्रसन्न कर पाना संभव है. कई बार हम पूजा हेतु यदि शिवालय नही जा पाते हैं, तब भी हम भगवान की पूजा को साधारण रुप से किंतु असरदायक तरीके से संपन्न करके भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर पाने में सफल हो सकते हैं. आईये जानते हैं कैसे करें घर पर भगवान शिव का पूजन.
मानसिक रुप से शिवलिंग पूजा पूरी आस्था के साथ और एकाग्र मन के साथ करने का अर्थ इस प्रकार है कि यह विश्वास करना है कि आपके सामने रखी मूर्ति में भगवान शिव व्याप्त हैं. यदि घर में कोई शिवलिंग नहीं है, तो आप रेत या मिट्टी का शिवलिंग बना सकते हैं जैसा कि भगवान राम ने रामेश्वर पहुंचने पर किया था. पानी, दूध या कोई भी तरल पदार्थ जैसे गुलाब जल, शहद आदि डालकर पूजा कर सकते हैं. यह भगवान की पूजा का माध्यम है. फिर फूलों से सजाएं, आरती करें और प्रार्थना करें. यदि शिवलिंग मिट्टी का हो तो शांति जल डालें और शिवलिंग को विरूपित करें. यदि यह पत्थर की मूर्ति से बना है तो इसे अपने घर में रखें और दैनिक पूजा के लिए उपयोग करना चाहिए. इस पूजा के लिए कोई कठोर नियम नहीं हैं. जरूरत है विश्वास और समर्पण की. भगवान अपने भक्तों की श्रद्धा द्वारा ही प्रसन्न हो जाते हैं तभी तो वह भोलेनाथ कहलाते हैं.
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शिव मानस पूजा
भगवान शिव को मानसिक रुप से पूजा जाना ही इस पूजा का आधार होता है यह एक सुंदर भावनात्मक स्तुति भी होती है, जिसमे व्यक्ति अपने मनके द्वारा भगवान् शिव की पूजा कर सकता है.
शिव मानस पूजा स्तोत्र के द्वारा कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के भगवान शिव की पूजन कर पाने में सफल हो सकता है. धर्म शास्त्रों में मानसिक पूजा को बहुत महत्व दिया गया है. यह उत्तम शुद्ध मन से की गयी पूजा होती है जिसमें संपूर्ण भाव मन द्वारा उत्पन्न होते हैं.
श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।
शिव मानस पूजा स्त्रोत
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम् मृग मदामोदांकितम् चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् गृह्यताम्॥
सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥
छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
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साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥
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