चीन से बाहर कोरोना का सबसे ज़्यादा असर इटली में देखने को मिल रहा है और इटली काएक इलाका ऐसा है, जहां हालात बदतर होते जा रहे हैं। जगह का नाम है लोंबार्डी। ये इलाका यूरोप में इस महामारी का केंद्र बना हुआ है। लोंबार्डी में करीब एक करोड़ लोग रहते हैं। अब तक 170 से ज्यादा देशों में पहुंच गया है। इसके संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या 8925 को पार कर गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे महामारी घोषित कर दिया है।
भारत में भी कोरोना से संक्रमण के 166 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इनमें141 भारतीय और 25 विदेशी नागरिक हैं। इसके लक्षणों को पहचानकर ही कोरोनावायरस की बेहतर तरीके से रोकथाम की जा सकती है। संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। कुछ मामलों में कोरोना वायरस घातक भी हो सकता है। खास तौर पर अधिक उम्र के लोग और जिन्हें पहले से अस्थमा, डायबिटीज़ और हृदय की बीमारी है।
राहू-केतु की भूमिका
चीन के वूहान शहर में कोरोना के कारण पहली मृत्यु 9 जनवरी, 2020 को दर्ज होती है। उसदिन चंद्रग्रहण था। हम जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में राहू-केतु को वायरस का कारक माना गया है। चंद्रमा राहू के साथ युति में था और केतु के साथ शनि, गुरु,सूर्य और बुध युति में थे। यानि राहू-केतु अक्ष पर पांच ग्रह विराजमान थे जिस कारण बीमारी अनियंत्रित होकर फ़ैल गई। जब-जब लोक कल्याणकारी ग्रह जैसे कि चंद्रमा, सूर्य, गुरु आदि पीड़ित अवस्था में होते हैं, तब-तब प्रलयकारी स्थितियां निर्मित होती हैं। वायु तत्व की राशि मिथुन में राहू की उपस्थिति ने भी बीमारी को हवा में फैलने में सहायता पहुंचाई। राहू आर्द्र नक्षत्र में हैं और इसके दवता रूद्र हैं जो शिव स्वरुप हैं लेकिन पशुओं के अधिष्ठाता हैं इसलिए इन्हें पशुपति नाथ कहा गया है। यदि इनके फ़ूड बाज़ार की तरफ देखें तो विभिन्न पशु तथा सांप, चमगादड़ सभी ये खाते हैं। सांप राहू-केतु को दर्शाते हैं और पशु के स्वामी हैं पशुपतिनाथ, इसलिए कर्म सिद्धांत के अनुसार इन्हें कोई कार्मिक राहत नहीं मिल सकी।
गुरु की भूमिका
गुरू की एक विशेषता है कि यह हर परिस्थिति को विशाल दृष्टिकोण से देखने की क्षमता रखता है। यानि गुरू हर चीज को विस्तारपूर्वक एवं विशाल दायरे में प्रदर्शित करता है। इसलिए कोरोना बहुत तेजी से फैलता चला गया और इसने एक स्थानीय बीमारी को अंतर्राष्ट्रीय महामारी में बदल दिया। राहू-केतु भी गुरु के विरोधी माने जाते हैं और गुरु चांडाल योग का निर्माण करते हैं। गुरु चांडाल योग बहुत ही अशुभ और नकारात्मक परिणाम देने वाले होते हैं। इसलिए गुरु का कल्याणकारी स्वरुप प्रदर्शित नहीं हो सका।
यूँ तो ये एक सर्वमान्य तथ्य है कि कोई भी बीमारी किसी एक ग्रह के कारण नहीं होता बल्कि अनेक ग्रहों के संयोजन और राशियों के प्रभाव के कारण होता है। यहाँ भी राहू, केतु के साथ-साथ अन्य ग्रह भी जिम्मेदार हैं। उसी तरह सभी लोग बीमारी के प्रतिउत्तरमें एक समान प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। ये हर व्यक्ति की शारीरिक क्षमता और उसकी कर्मयात्रा पर निर्भर करती है। उदहारण के लिए यदि शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कम है तो बीमारी पकड़ने की सम्भावना प्रबल होगी। उसी तरह यदि कुंडली में चंद्रमा पीड़ित हैं तो हौसले में कमी महसूस होती है और मानसिक आशंका से मन कमजोर होता है। विटामिन-सी और कैल्शियम लेकर हम अपनी प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा सकते हैं। साफ़-सफाई, डाक्टरी निर्देशों का पालन, शाकाहार आदि से हम बचने का प्रयास कर सकते हैं। योग-प्राणायाम का भी विशेष योगदान है क्योंकि ये छाती से सम्बंधित है। याद रखें कि केवल श्वास लेने और छोड़ने को प्राणायाम नहीं कहते हैं, इसमें बाह्य कुम्भक और अन्तः कुम्भक जरुर शामिल करें, तभी प्राणायाम का लाभ मिलेगा।
हालाँकि, सूर्य आरोग्य का कारक हैं और अभी मीन राशि से गोचर कर रहे हैं और उच्चाभिलाषी हैं लेकिन अभी दो महीने से शनि की राशियों मकर और कुम्भ से गोचर कर रहे थे। शनि की राशि में होने से सूर्य कमजोर स्थिति में होता है और रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
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मिथुन राशि से गले के रोग देखे जाते हैं तथा कर्क राशि फेफड़े और जल संबंधित बीमारियों को दर्शाती है। कर्क और मिथुन राशि का पीड़ित होना भी कोरोना को लगातार बढ़ा रहा है। यह तथ्य भी सामने आया है कि जिन लोगों को मधुमेह या अवसाद (डिप्रेशन) की समस्या है, उन्हें कोरोना वायरस ज्यादा और जल्दी प्रभावित कर रहा है। सीधी बात है कि मधुमेह के लिए भी बृहस्पति और डिप्रेशन के लिए चन्द्रमा मुख्य रूप से जिम्मेदार ग्रह हैं। ये दोनों ही रोग व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बना देते हैं।
कोरोना वायरस कब समाप्त होगा
30 मार्च को गुरु राहू-केतु के अक्ष से निकलकर मकर में प्रवेश करेंगे। इसके साथ ही कोरोना के विस्तार की गति काफी धीमी हो जाएगी। लेकिन शनि और उच्च के मंगल के साथ मकर में गुरु के जाने के बाद भी बहुत अधिक राहत नहीं मिलने वाली है।
इस बीच 25 मार्च से नवरात्रि भी आरंभ हो रही है। इस समय भौतिक जगत में ऋतू परिवर्तन के कारण धरती, आकाश और वायुमंडल में परिवर्तन होने लगते हैं। वैसे तो हमलोग जानते हैं कि प्राचीन काल में जब राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया और देवों को बहुत सताया जाने लगा तो सारे देवों ने मिलकर अपने-अपने तेज से एक ऐसी दिव्य शक्ति का प्राकट्य किया जिसे दुर्गा कहा जाने लगा। फिर इसी शक्ति स्वरपा दुर्गा माता ने असुरों का नाश किया। यह वह समय होता है जब ब्रह्माण्ड में असंख्य प्रकाश-धाराएँ हमारे सौर-मंडल पर झड़ती हैं। हिरण्यगर्भ संहिता के अनुसार ये प्रकाश-धाराएँ ब्रह्माण्डीय ऊर्जाएं हैं। ये हमारे सौरमंडल में प्रवेश कर एवं विभिन्न ग्रहों, नक्षत्र और तारों की उर्जाओं से घर्षण करने के बाद एक विशिष्ट प्रभा का रूप धारण कर लेती हैं। इससे मनुष्य की चेतना जाग्रत हो जाते है शरीर के चुम्बकीय शक्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे लोगों की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है, जिससे कोरोना से लड़ने में मदद मिलेगी।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है कि सूर्य पर ही पूरा जीवमंडल आश्रित है और यही पृथ्वी पर पूरे जीवन चक्र को चलाने वाली मुख्य शक्ति है।
वैदिक साहित्य में सूर्य को जीवनदाता और जीवनपालक कहा जाता है। “मत्स्य पुराण” के अनुसार, “आरोग्यम भास्करादिच्छेत” अर्थात सूर्य अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है। सौर्य किरण को न सिर्फ मानव बल्कि अन्य पशुओं और वनस्पतियों की सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस किरण में बीमारियां पैदा करने वाले तत्वों को खत्म कर अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने की शक्ति होती है। सूर्य की किरणों से बीमारी के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं। और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता। सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में ग्रहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।
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