धर्म पुराणों के अनुसार इस मंदिर का नाम कामाख्या पड़ने के पीछे की कथा है की भगवान विष्णु ने सती के प्रति महादेव शिव का मोह भांग करने के लिए अपने चक्र से सती के जलते शरीर के 51 भाग कर दिए थे जिसके कारण जहां-जहां माँ के अंग गिरे वह शक्तिपीठ बन गए। यहां माँ का योनि भाग गिरा था। चमत्कारी बात यह है की यहां माँ आज भी रजस्वला होती हैं। प्रति वर्ष जून के महीने में 3 दिनों के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है जिन्हे पुनः अम्बुवाची मेला और हर्ष के साथ खोला जाता है।
नवरात्र में कराएं कामाख्या बगलामुखी कवच का पाठ व हवन, पाएं कर्ज मुक्ति एवं शत्रुओं से छुटकारा
प्रति वर्ष अम्बुवाची मेले के समय मंदिर के पास स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है। कथन के अनुसार ऐसा कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। दूसरे शक्तिपीठों के अपेक्षा कामाख्या मंदिर में भक्तों को अनोखा प्रसाद दिया जाता है, जो की लाल रंग का गीला कपड़ा होता है। माँ जब रजस्वला होती हैं उस समय सफ़ेद कपड़ा कुंड के आस पास बिछा दिया जाता है। जो पूजा के भक्तों को प्रसाद स्वरुप दिया जाता है।मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां कुवारी कन्या को खाना खिलाया जाता है और भंडारा भी रखा है। माँ को प्रसन्न करने के लिए यहां पशुओं की बलि भी दी जाती है परन्तु यहां मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती। कामाख्या देवी का पूजन भगवान शिव की नववधू के रूप में किया जाता है जो इच्छापूर्ति की भी देवी हैं। भक्तों द्वारा मंदिर में लायी गयी मुरादें अवश्य ही पूर्ण होती हैं। इस मंदिर से लगे एक और मंदिर में आपको माता की मूर्ति विराजित मिलेगी जिसे कामादेव मंदिर भी कहा जाता है। इस जगह पर पूरे वर्ष भक्तों का ताता लगा रहता है। नवरात्रि के दिनों में माँ की पूजा करने से भक्तों पर असीम कृपा बरसती है।
यह भी पढ़े
शनि प्रदोष व्रत से कैसे दूर होते हैं अशुभ प्रभाव
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से दूर हो जाती हैं गंभीर बीमारियां, काल भी रहता है कोसो दूर