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Home ›   Blogs Hindi ›   Vinayak Chaturthi 2021 Vrat Katha Tithi Puja Vidhi Shubh Muhurat

विनायक चतुर्थी पर कैसे करें पूजन, जानें तिथि महत्व एवं पूजन विधि

Myjyotish Expert Updated 15 Mar 2021 06:29 PM IST
Vinayak Chaturthi
Vinayak Chaturthi - फोटो : Myjyotish
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विनायक चतुर्थी मूल रूप से भगवान गणेश की पूजा अर्चना के लिए होती है जो कि अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनायी जाती है इस बार फाल्गुन माह में पड़ने वाली विनायक चतुर्थी 17 मार्च दिन बुधवार को पड़ने वाली है जो गणेश भगवान का ही दिन होता है
 
इस बार  गणेश चतुर्थी का बहुत महत्व रखने वाली है 

गणेश भगवान बुद्धि के देवता माने जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले देवता है जिनको थोड़े से प्रयत्न के द्वारा प्रसन्न किया जा सकता है आज हम जानेगे इसके महत्व को कैसे करे विनायक चतुर्थी पर प्रथम पूजे जाने वाले गणेश की पूजा.

क्या है विनायक चतुर्थी
 
विनायक चतुर्थी अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनायी जाती है जिस कारण इसे विनायक चतुर्थी कहते हैं इस तिथि को श्रध्दा पूर्वक गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है गणेश भगवान बुद्धि
 के देवता माने जाते हैं इनका पूजन करने से भक्तों की  बुध्दि तेज होती है साथ ही उनके जीवन में आयी सभी विघ्न बाधाएं दूर होती है 
जिसके कारण इन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है 

कैसे करें विनायक चतुर्थी की पूजा अर्चना
 
इस दिन सबसे पहले व्रती को उठकर स्नान करना चाहिए और फिर भगवान गणेश की वस्त्र जनेव  धारण करना चाहिए उनका श्रृंगार करके उन्हें दुवा अर्पण करना चाहिए प्रसाद के रूप में उनका प्रिय मिष्ठान मोदक का उन्हें भोग लगाना चाहिए उसके पश्चात गणेश भगवान के मंत्र का उच्चारण श्रध्दा पूर्वक करना चाहिए

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क्या है विनायक चतुर्थी व्रत कथा

विनायक चतुर्थी व्रत कथा बहुत प्रसिद्ध मानी जाती है पौराणिक मान्यताओं एक अनुसार एक बार माता पार्वती अपने मन में सोचती है कि मेरा कोई  पुत्र ही नहीं है जिसको मैं कुछ आदेश दे सकूँ तभी माता अपने मैल से एक पुत्र बनाती है और उसमें प्राण डाल देती है और आदेश देती में स्नान करने जा रही हूँ इस स्नान गृह तुम्हें किसी को अंदर आने नहीं देना और तुम इसके द्वार पर खड़े रहना ताकि कोई अंदर न आ सके  परन्तु कुछ समय बाद भगवान शिव आते और कहते कि मुझे अंदर जाना पार्वती से मिलना है वो अपनी माता की आज्ञावश भगवान शिव को अंदर नहीं जाने देते तब भगवान शिव क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर उसके शरीर से अलग कर देते हैं

माता पार्वती को ये आभास हो जाता है कि उनके पुत्र के प्राण संकट में है तब वो स्नान गृह से बाहर आती है और अपने बालक को इस अवस्था में देख क्रोधित हो जाती है और भगवान शिव उनके क्रोध को देख नंदी महाराज से कहते हैं कि तुम जाकर किसी भी बालक का सिर काटकर ले आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो भगवान शिव की आज्ञा अनुसार वो नंदी वहाँ जाते हैं और एक हथिनी के बच्चे का सिर लाकर देते हैं भगवान शिव उस सिर बालक के शरीर से जोड़ देते है तब  माता पार्वती कहती है कि इस सिर को लगे देख तो जग  मेरे बालक का उपहास उड़ाऐगा  तब भगवान शिव उस बालक का नाम गणेश करते हैं साथ ही उसे प्रथम पूजे जाने वाले देवता होने का वरदान देते हैं और आगे कहते हैं कि अगर कोई शुभ काम में गणेश की पूजा नहीं होती तो उसका वो शुभ काम अधूरा माना जाएगा .

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