संतान सुख के लिए रखा जाता है वत्स द्वादशी व्रत जानें इस व्रत का महत्व
वत्स द्वादशी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इस पावन पर्व के अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. यह पर्व कार्तिक माह में भी आता है और तब इस पर्व को बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धार्मिक पुराणों में सभी तीर्थ गौमाता में है. ऐसा माना जाता है कि गौ माता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य फल मिलता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि करने से भी प्राप्त नहीं होता.
वत्स द्वादशी महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के जन्म के बाद, माता यशोदा ने इस दिन गौमाता के दर्शन और पूजा की थी. जिस गौ माता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल चराते थे और जिन्होंने उनका नाम गोपाल रखा था और उनकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया था, तो ऐसी गाय की रक्षा और पूजा करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है.
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गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवता और सभी तीर्थों का वास है. इसलिए हिंदू शास्त्र बताते हैं कि अगर सभी देवी-देवताओं और पूर्वजों को एक साथ प्रसन्न करना है, तो दुनिया में गौ भक्ति-गौसेवा से बड़ा कोई अनुष्ठान नहीं है.
यदि गाय माता को खिलातें हैं, फिर वह स्वतः ही समस्त देवी-देवताओं के पास पहुंच जाता है और भविष्य पुराण के अनुसार गाय की पृष्ठभूमि में ब्रह्मा, कंठ में विष्णु, मुख में रुद्रदेव महादेव शिव, मध्य सभी देवताओं और रोमों में महर्षिगण पूंछ में, पूंछ में अनंत सर्प, खुरों में सभी पर्वत, गंगा यमुना और नदियाँ लक्ष्मी और आँखों में सूर्य और चन्द्रमा का वास होता है.
वत्स द्वादशी पूजन
वत्स द्वादशी के दिन प्रात:काल से ही पूजन आरंभ हो जाता है. इस दिन तुलसी और आंवले के पौधों की भी पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि द्वादशी को भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और भगवान ब्रह्मा के साथ वृंदावन जाते हैं. इसलिए, जो कोई भी इस दिन भगवान विष्णु के लिए समर्पण के साथ पूजा करता है, उसे अच्छे स्वास्थ्य, धन और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन दीप जलाना शुभ माना जाता है. इस दिन स्त्रियां प्रात:काल गाय माता की पूजा करती हैं इसके पश्चात तुलसी के पौधे ओर आंवले की पूजा करते हैं. इस दिन भक्त व्रत भी रखते हैं. नारियल, गुड़, खजूर, गन्ना और केले को प्रसाद के रूप में भगवान की पूजा में चढ़ाना चाहिए.
गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बच्चों की सुरक्षा, लंबी उम्र और परिवार की खुशियों के लिए इस त्योहार को मनाती हैं. इस दिन घरों में खासतौर पर बाजरे की रोटी बनाई जाती है. वत्स द्वादशी के दिन गाय के दूध के स्थान पर भैंस या बकरी के दूध का प्रयोग किया जाता है. हिंदू धर्मग्रंथों में इसके महत्व को बताते हुए कहा गया है कि इस दिन घर की महिलाएं गाय मां की पूजा करती हैं. वह उसे रोटी और हरा चारा खिलाकर प्रसन्न करती है, ऎसा करने से उस घर में देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है और उस परिवार में कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है
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