Success Mantra : कोयले के समान होती है बुरी संगत, छोड़ने के बाद भी हाथ में कालिख लगा जाती है
गरम तवे पर गिरी पानी की बूंद मिट जाती है लेकिन जब वही बूंद सीप पर गिरती है तो वो मोती में बदल जाती है. जीवन में संगति के मायने समझने के लिए पढ़ें ये लेख. कोयले के समान होती है बुरी संगत, छोड़ने के बाद भी हाथ में कालिख लगा जाती है संगति पर प्रेरक वाक्य,
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जीवन में साथ के बड़े मायने होते हैं. संगति अच्छी हो या फिर बुरी, उसका असर इंसान पर जरूर पड़ता है. यदि आप बुरे व्यक्ति का साथ करते हैं तो आप उसके उसके साथ रहने वाले कलंक से नहीं बच पाएंगे. इसी प्रकार यदि आप किसी संत या भले मानुष के साथ रहते हैं तो उसकी अच्छी बातों का कुछ न कुछ असर जरूर पड़ेगा, लेकिन कुछ लोग कमल के पत्ते के समान भी होते हैं, जिसमें कीचड़ की यदि बूंछ भी गिर जाए तो वह उस पर नहीं टिकती है.
रहीमदास जी ने अपने दोहे के माध्यम से स्पष्ट करते हुए कहा है कि जिस तरह चंदन के पेड़ पर लिपटे सर्प भी उसकी शीतलता को दूर नहीं कर पाते हैं, उसी प्रकार सज्जन व्यक्तियों पर दुर्जन लोगों का कोई असर नहीं पड़ता है. आइए जीवन में संगति का क्या प्रभाव होता है:
अच्छी या बुरी संगति का असर व्यक्ति के जीवन में पड़ता है। गलत लोगों की संगत करने पर कुछ समय के लिए तो सुख मिलता है लेकिन बाद में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह बात खनैताधाम में आयोजित हो रही भागवतकथा के पहले दिन खनैता महंत रामभूषणदास महाराज ने कही।
इससे जुड़े 5 अनमोल वाक्यों के माध्यम से जानते हैं:
बुरी संगत उस मीठे जहर के समान होती है जो शुरुआत में तो मीठी लगती है, लेकिन अंत में हमारे लिए जानलेवा साबित होती है.
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बुरी संगत उस मीठे जहर के समान होती है जो शुरुआत में तो मीठी लगती है, लेकिन अंत में हमारे लिए जानलेवा साबित होती है.
जिस व्यक्ति को बुरी संगत लग गई हो, उसे किसी दुश्मन की जरूरत नहीं होती है. कहने का मतलब ये कि बुरी संगत उसे धीरे-धीरे बर्बाद करके ही छोड़ती है.
जीवन में संगति का बहुत ज्यादा असर होता है. मंथरा की संगति के कारण कैकेयी हमेशा के लिए बदनाम हो गई तो वहीं संतों और सज्जनों की संगति के कारण विभीषण का उद्धार हो गया.
बेईमान व्यक्ति की संगति करने पर आपके भीतर बेईमानी की भावना उत्पन्न होगी, लेकिन जब वही बेईमान व्यक्ति अच्छी संगति से जुड़ता है तो उसकी दिशा-दशा ही बदल जाती है.
कबीरदास जी के अनुसर संतों की संगति कभी भी बेकार नहीं जाती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे मलयगिरि की सुगंधी उड़कर लगने से नीम भी चन्दन हो जाता है, फिर उसे कभी कोई नीम नहीं कहता है.
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