भाद्रपद माह की शनि अमावस्या पर बन रहे हैं विशेष संयोग जानें कैसे लाभ उठाएं इस शुभ दिन का
शनि अमावस्या हिंदुओं के लिए एक बहुत ही दुर्लभ और अत्यंत विशेष अवसर होता है. इस दिन धार्मिक कार्यों में मुख्य रुप से पवित्र नदियों में स्नान करना है तथा तर्पण से जुड़े कार्य विशेष होते हैं. भाद्रपद मास की अमावस्या 27 अगस्त, शनिवार को पड़ रही है. शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या के कारण इसे शनि अमावस्या 2022 कहा जाता है. शनिवार के दिन पड़ने वाली इस अमावस्या के दिन में ग्रह, शनि ग्रह की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. शनि देव एक परोपकारी देवता हैं. वह न्याय करने वाले धर्म का संरक्षण करते हैं. वह लोगों के पूर्व जन्मों के कारण ही जीवन में नकारात्मक या सकारात्मक फलों को देते हैं.
शनि अमावस्या पर दूर होते हैं शनिदोष
शनि देव बहुत दयालु और आसानी से प्रसन्न होने वाला भी हैं. जब लोग भक्ति और विनम्रता के साथ उनकी पूजा करते हैं, तो वे बहुत प्रसन्न होते हैं और कुंडली में शनि की स्थिति भी उत्तम होती है. कहा जाता है कि शनि अमावस्या के दिन शनि पूजा करने से जीवन की बाधाओं से बड़ी राहत मिलती है. शास्त्रों में भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या भी कहा गया है. शनि अमावस्या पर शनि देव पूजा और शुभ योग में विशेष उपाय किए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन विशेष उपाय करने से पितृ दोष और शनि दोष से मुक्ति मिलती है.
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शनि अमावस्या पर बनने वाले संयोग
शनिअमावस्या के दिन शिव और पद्म योग नामक शुभ योगों का निर्माण हो रहा है. यह अत्यंत ही शुभ योग माने जाते हैं. पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि शुक्रवार 26 अगस्त को प्रातः 12.26 बजे से प्रारंभ होगी. वहीं, अमावस्या तिथि का समापन 27 अगस्त, शनिवार को दोपहर 13:47 बजे होगा. ऐसे में उदय तिथि की मान्यता के अनुसार 27 अगस्त, शनिवार को अमावस्या पूजा और विशेष उपाय करने आ विधान रहेगा.
शनि अमावस्या पूजन
इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान के लिए जल में काले तिल डाल कर पवित्र स्नान करना चाहिए.
पूजा हेतु वेदी का निर्माण करना चाहिए तथा उसके सामने बैठ कर संकल्प लेना चाहिए.
शनि अमावस्या का उपवास और पूजा पूरी एकाग्रता, भक्ति और विश्वास के साथ करनी चाहिए.
दीपक और अगरबत्ती जलानी चाहिए और शनि देव को फूल और प्रसाद अर्पित करना चाहिए.
शनिदेव की पूजा के लिए नीले रंग के फूलों का प्रयोग करना उत्तम होता है.
शनि मंत्र "ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः"मंत्र का ग्यारह हजार बार जाप करना चाहिए.
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