Shradha Amavasya : आश्विन अमावस्या श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन संपूर्ण होगा पितरों के आशीर्वाद से
आश्विन मास की अमावस्या तिथि बहुत विशेष तिथि समय होता है. इसे महालय अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या, पितृ मोक्ष अमावस्या या पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. हिंदू परंपरा में यह दिन पूर्वजों को समर्पित है और इसी के साथ पितर पक्ष की समाप्ति हो जाती है.
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संपूर्ण भारत में इस दिन पर विशेष पूजा अनुष्ठा इत्यादि कार्य किए जाते हैं. महालय अमावस्या 15 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध अनुष्ठान का अंतिम दिन होता है, इस दिन को सबसे शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन किसी भी मृत व्यक्ति का श्राद्ध संस्कार किया जा सकता है, चाहे दिवंगत तिथि कुछ भी हो.
महालया अमावस्या पर महत्वपूर्ण समय
महालय अमावस्या 25 सितंबर रविवार को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्योदय समय सुबह 6:20 बजे होगा. अमावस्या तिथि 25 सितंबर, 2022 3:12 पूर्वाह्न से शुरू होगी और अमावस्या तिथि समाप्ति 26 सितंबर को 3:24 रात्रि समय होगी. अपर्णा काल 25 सितंबर, दोपहर 1:30 - 25 सितंबर, 3:53 अपराह्न पर होगा. कुटुप मुहूर्त 25 सितंबर, 11:54 पूर्वाह्न - 25 सितंबर, 12:42 अपराह्न होगा और रोहिना मुहूर्त 25 सितंबर, दोपहर 12:42 अपराह्न - 25 सितंबर, दोपहर 1:30 बजे तक होगा.
महालय अमावस्या तर्पण का विशेष दिन
महालय अमावस्या तर्पणम या तर्पण और अनुष्ठान पूर्वजों के आशीर्वाद का आह्वान करने और शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए किया जाता है. महालय अमावस्या पितृ पक्ष के अंतिम दिन को मनाई जाती है और यह समय इस अवधि का सबसे महत्वपूर्ण दिन भी होता है.
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बंगाल में इसे महालय के रूप में मनाया जाता है जो भव्य दुर्गा पूजा समारोह की शुरुआत का प्रतीक होता है. यह दिन देवी दुर्गा के पृथ्वी पर अवतरण का भी प्रतीक है. इस दिन को पूर्वजों के प्रति अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ सम्मान और सम्मान देने के उद्देश्य से मनाया जाता है. महालय अमावस्या तेलंगाना राज्य में बथुकम्मा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है, इसी तरह से भारत के अनेकों स्थान पर इसे किसी न किसी रुप में मनाए जाने का विधान रहा है.
महालया अमावस्या का महत्व
महालय अमावस्या का अनुष्ठान आशीर्वाद, कल्याण और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है. इस अनुष्ठान को करने वाले को भगवान यम का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है, जीवन सभी कष्ट एवं बुराइयों से सुरक्षित रहता है, हिंदू शास्त्रों में यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति पहले 15 दिनों के दौरान अपने पूर्वजों के श्राद्ध का पालन करने में विफल रहता है या मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनकी ओर से 'तर्पण' सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के दिन मनाया जा सकता है.
ऐसा माना जाता है कि महालय अमावस्या के दिन पूर्वज वापस जाने लगते हैं और यदि उनकी ओर से श्राद्ध अनुष्ठान नहीं किया जाता है, तो वे दुखी होकर लौट जाते हैं. इसलिए इस दिन अमावस्या के दिन श्राद्ध का कार्य अवश्य करना चाहिए.
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