पितृपक्ष में जब न कर पाएं श्राद्ध तो पितरों को मनाने के लिए करें ये सब उपाय
अभी फिर आज के दिन चल रहे हैं और पितृपक्ष में यदि किसी कारणवश पितरों के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान न संभव हो पाए तो आखिर किस उपाय को करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, जानने के लिए पढ़ें ये लेख.
हिंदू धर्म में पितरों की मुक्ति और उनके आशीर्वाद को पाने के लिए पितृपक्ष को उत्तम माना गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध एवं पिंडदान से न सिर्फ पितर प्रसन्न होते हैं, बल्कि उन्हें इस पूजन कार्य से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि जब तक इंसान पितृ ऋण से मुक्ति नहीं हो जाता है, तब तक उसे ईश्वरीय कृपा भी नहीं प्राप्त होती है.
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यही कारण है कि पितृपक्ष आते ही लोग अपने घर के दिवंगत लोगों के लिए श्राद्ध-तर्पण आदि की तैयारी करना शुरु कर देते हैं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने पितरों का विधि-विधान से श्राद्ध न कर पाएं तो उसे उनकी नाराजगी का डर सताने लगता है. आइए जानते हैं कि जब परंपरागत तरीके से पितरों को श्राद्ध न कर पाएं तो उन्हें मनाने और प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए.
आदर के साथ ब्राह्मण को भोजन कराएं
यदि आप किसी कारणवश पितृपक्ष के दौरान तिथि विशेष पर अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान नहीं कर पा रहे हैं तो आप बिल्कुल भी परेशान न हों और पितृपक्ष के अंत में पड़ने वाली सर्व पितृ अमावस्या के दिन किसी योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण को आदरपूर्वक अपने घर में बुलाकर भोजन कराएं.
भोजन के बाद ब्राह्मण को अपनी क्षमता के अनुसार दक्षिणा, वस्त्र आदि जो संभव हो दान करें, लेकिन ऐसा करते समय भूलकर भी किए जाने वाले दान का अभिमान न करें.
दक्षिण दिशा की ओर करें ये सरल उपाय
यदि आप किसी ऐसी जगह पर हों जहां पर पितरों का श्राद्ध करने के लिए सामान न उपलब्ध हो या फिर आपको भोजन कराने के लिए ब्राह्मण न मिल पाए तो आपको पितरों को प्रसन्न दक्षिण दिशा की ओर मुंह करने के बाद दोनों हाथ उपर करके पितरों को याद करें. पितरों से श्राद्ध न कर पाने के लिए माफी मांगते हुए अपने उपर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करें.
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इस उपाय से भी प्रसन्न होंगे पितर
पितृपक्ष में यदि किसी कारणवश आप पितरों का श्राद्ध न कर पाएं और आपको भोजन कराने अथवा दान देने के लिए कोई ब्राह्म्मण भी न मिले तो आपको किसी गाय को एक मुट्ठी घास खिलाना चाहिए.मान्यता है कि पितरों के निमित्त किए जाने वाले इन उपायों के माध्यम से की जाने वाली क्रिया का लोप नहीं होना चाहिए.
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