Shraddha Paksha : जानें कब किया जाएगा सप्तमी और अष्टमी का श्राद्ध, इस कारण बनी दुविधा
सप्तमी तिथि श्राद्ध का समय 16 सितंबर का होगा और 17 को श्राद्ध का समय नहीं होगा. सप्तमी तिथि दो दिन अपराह्न व्यापिनी होगी, इस कारण से शास्त्र अनुसार नियम पालन करते हुअ सप्तमी तिथि का श्राद्ध 16 सितंबर 2022 को शुक्रवार के दिन किया जा सकेगा. इस दिन सप्तमी तिथि संपूर्ण अपराह्न काल में व्याप्त रहेगी.
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किन 17 सितंबर शनिवार को यह तिथि आंशिक रुप से व्याप्त होगी जिसके कारण 17 को तिथि श्राद्ध नहीं बन रहा है. लेकिन कुछ कारणवश जो लोग 16 को श्राद्ध नहीं कर पाएं वह विशेष परिस्थितियों में ही 17 को 13:36 से 14:15 तक श्राद्ध कार्य कर सकते हैं.
श्राद्ध तिथि महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. श्राद्ध समय के दौरान कुछ तिथियों का विशेष महत्व रहता है. कहा जाता है कि इस दौरान पितर स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिवार के पास जाते हैं.
पितृ पक्ष में यदि श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण विधिवत किया जाए तो दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है और वे सुखी संतुष्ट होकर लौट जाते हैं. वैसे तो कुल 16 श्राद्ध होते हैं, लेकिनकुछ तिथि के श्राद्ध का महत्व अधिक होता है. वैसे मृतक परिवार की मृत्यु की तिथि को श्राद्ध किया जाता है. अर्थात यदि प्रतिपदा के दिन परिवार की मृत्यु हुई हो तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए.
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सप्तमी का श्राद्ध 16 को और अष्टमी का श्राद्ध 18 सितंबर को
हिन्दू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है. इस बार सप्तमी का श्राद्ध 16 सितंबर को है, 18 तारीख को अष्टमी होगी. 18 को अष्टमी तिथि का विशेष समय होगा, इस दिन महिलाएं अपने बेटे और परिवार की खुशी के लिए व्रत रखती हैं. वह न तो खाती है और न ही पानी पीती है.
भक्त मंदिरों में जाकर कथा सुनकर ही जल ग्रहण करते हैं और रात में तारों को देखकर ही अन्न का ग्रहण किया जाता है. इस दिन एक महिला मंदिर से पीले रंग की 16 गांठों का धागा लेती है और उसे अपने घर के सभी सदस्यों के हाथों में भी बांधती है.
सप्तमी पितृ पक्ष में इन नियमों का पालन करने से होंगे पितृ प्रसन्न
श्राद्ध करने के लिए किसी विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर कार्य किया जाता है. श्राद्ध के दिन अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. जिस व्यक्ति के लिए आप श्राद्ध कर रहे हैं, उसकी पसंद के अनुसार विशेष रूप से भोजन तैयार करना चाहिए.भोजन में लहसुन-प्याज का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के दिन को याद करने से पितरों के घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त होते हैं. इस दौरान पंचबली भी अर्पित की जाती है. तर्पण और पिंडदान करने के बाद पुजारी या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा देनी चाहिए तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. ऎसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं.
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