संतान की सुरक्षा के लिए रखा जाता है शीतला अष्टमी, जानें पूजा का महत्व
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है. शीतला माता का पूजन सभी प्रकार के रोगों से सुरक्षा एवं संतान की दीर्घायु हेतु किया जाता है. शीतला पूजन को बसौड़ा भी कहा जाता है. मां शीतला की पूजा में बासी भोजन का महत्व होता है.
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माता शीतला की पूजा करने से परिवार के कल्याण का सुख मिलता है. प्रत्येक माह की इन्हीं तिथियों में शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व होता है, लेकिन चैत्र मास में आने वाली सप्तमी और अष्टमी को विशेष माना जाता है.
माता शीतला का पूजन सभी प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाला है. शीतला माता का व्रत माताएं अपनी संतान एवं परिवार के सुख हेतु विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन ठंडा भोजन किया जाता है और गरम वस्तुओं का सेवन करना निषेध होता है.
शीतला अष्टमी पूजा का मुहूर्त
धार्मिक कथाओं और मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि इस दिन माता शीतला की पूजा करने से आरोग्यता का सुख प्राप्त होता है. देवी की पूजा करने से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है. शीतला सप्तमी का दिन 14 मार्च 2023 को और शीतला अष्टमी (बसोड़ा) का दिन 15 मार्च 2023 को होगा.
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शीतला माता को शीतलता प्रदान करने वाली देवी माना जाता है इसलिए सूर्योदय से पूर्व इनकी पूजा करना श्रेष्ठ माना गया है. शीतला माता की पूजा का समय 14 मार्च को सुबह 06:31 बजे से शाम 18:29 बजे तक रहेगा. शीतला अष्टमी 14 मार्च 2023 को 08:23 बजे से प्रारंभ होकर 15 मार्च 2023 को 18 बजे समाप्त होगी: 46.
शीतला माता की पूजा का महत्व
शीतला माता के संदर्भ में पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी की आराधना विशेष रूप से संतान सुख की कामना का फल प्रदान करती है. शीतला माता की पूजा का प्रचलन सभी स्थानों पर व्यापक रूप से देखने को मिलता है. देवी शीतला हाथों में कलश, झाडू, सूप लिए हुए गधे की सवारी करती हैं. शीतला पूजन के दिन माताएं संतान के कल्याण के लिए व्रत रखती हैं और संतान सुख प्राप्त करती हैं. यह व्रत आरोग्यता और सुख प्रदान करने वाला भी है. शीतला माता को रोगों के रक्षक के रूप में पूजा जाता है.
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