Shaktipeeth : 51 शक्तिपीठों की कहानी जहां मां सती के अंंग गिरे, हर जगह देवी को मिला नया नाम
Navratri 2022: हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ का विशेष महत्व है. हर शक्तिपीठ की अपनी एक कहानी है. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन किया गया है. इसमें से 42 शक्तिपीठ भारत में हैं. जानिए, कैसे बनीं 51 शक्तिपीठ
हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ का विशेष महत्व है. हर शक्तिपीठ की अपनी एक कहानी है. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन किया गया है. इसमें से 42 शक्तिपीठ भारत में हैं. 4 बांग्लादेश में हैं. 2 नेपाल में हैं और 1-1 श्रीलंका, पाकिस्तान और तिब्बत में हैं. हर शक्तिपीठ की अपनी एक कहानी है. शक्तिपीठ की पौराणिक कथा भगवान शिव और उनकी पत्नी माता सती से जुड़ी है.
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पौराणिक कथा के मुताबिक, माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल नाम का स्थान जिसे हरिद्वार के नाम से जाना जाता है वहां एक महायज्ञ किया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. माता सती को इसकी जानकारी मिली. पति को यज्ञ में आमंत्रित न करने का जवाब जानने के लिए वो पिता दक्ष के पास पहुंची.
माता सती ने अपने पिता से जब यह सवाल किया तो उन्होंने भगवान शिव के लिए अपशब्द कहे. उनका अपमान किया. माता सती अपमान से क्षुब्ध होकर उसी यज्ञ के अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी. भगवान शिव को इसी जानकारी मिलने पर वो क्रोधित हो उठे और उनका तीसरा नेत्र खुल गया.
वह तांडव करने लगे और उस स्थान पर गए जहां माता सती का शरीर था. उन्होंने माता सती का शरीर उठाया और कंधे पर रखा. भगवान शिव का तांडव जारी रहा. उन्होंने कैलाश की ओर रुख किया. पृथ्वी पर बढ़ते प्रलय का खतरा देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया. इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे. ऐसा 51 बार हुआ, इस तरह 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई.
जानिए कौन सा अंग कहां गिरा और उस शक्तिपीठ में माता को किस नाम से जाना गया…
मुकुट: पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के किरीटकोण ग्राम में उनका मुकुट गिरा. यहां उन्हें माता विमला के नाम से जाना गया.
मणिकर्णिका: उत्तर प्रदेश में वाराणसी के घाट पर उनके कान का गहना मणिकर्णिका गिरा, जिसके कारण उस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा और माता मणिकर्णी के रूप में जानी गईं.
पीठ: तमिलनाडु के कन्याकुमारी में माता की पीठ का हिस्सा गिरा. यहां की शक्ति पीठ में माता को सर्वाणी के नाम से जाना गया.
बायां नितंब: मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कमलाधव जगह के पास सोन नदी के किनारे माता सती का बायां नितंब गिरा.
दायां नितंब: अमरकंटक में ही माता का दायां नितंब गिरा और वहीं से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ और माता को देवी नर्मदा कहा गया.
आंखें: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में देवी सती की आंख गिरी. यहां नैना देवी का मंदिर बना और मां महिष मर्दिनी कहलाईं.
नाक: बांग्लादेश में शिकारपुर बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के पास उनकी नासिका यानी नाक गिरी. यहां उन्हें माता सुनंदा के नाम से जाना गया.
गला: कश्मीर के पास पहलगाम में माता सती का गला गिरा और उन्हें महामाया के रूप में स्थापित किया गया.
जीभ: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में उनकी जीभ गिरी और यहां वो अंबिका कहलाईं.
बायां वक्ष: पंजाब के जालंधन में छावनी स्टेशन के पास एक तालाब में माता सती का बायां वक्ष गिरा. यहां पर माता को त्रिपुरमालिनी के नाम से जाना गया.
दायां वक्ष: उत्तर प्रदेश के चित्रकूट स्थिति रामगिरी में माता सती का दायां वक्ष गिरा और उन्हें देवी शिवानी के नाम से जाना गया.
हृदय: गुजरात का अंबाजी मंदिर काफी फेमस है. यहां उनका हृदय गिरा और माता सती अम्बाजी कहलाईं.
केश: उत्तर प्रदेश के वृंदावन में उनके केशों का गुच्छा गिरा और वो उमा देवी के नाम जानी गईं.
ऊपरी दाढ़: तमिलनाडु के कन्याकुमारी में शुचितीर्थम शिव मंदिर के पास उनकी ऊपरी दाढ़ गिरी. यहां परवो देवी नारायणी कहलाईं.
निचली दाढ़: देवी सती की निचली दाढ़ पंचसागर में गिरी और यहां उन्हें देवी वाराही के नाम से जाना गया.
बाएं पैर की पायल: देवी सती के बाएं पैर की पायल बांग्लादेश के भवानीपुर में गिरी.
दाएं पैर की पायल: आंध्र प्रदेश में कर्नूल के भवानीपुर में उनके दाएं पैर की पायल गिरी और यहां वो देवी श्री सुंदरी कहलाईं.
बायीं एड़ी: पश्चिम बंगाल में पूर्व मेदिनीपुर जिले में माता सती की बाईं एड़ी गिरी थी. यहां पर देवी कपालिनी के नाम से मंदिर बना.
अमाशय: माता सती का अमाशय गुजरात के जूनागढ़ में गिरा. यहां वो चंद्रभागा के नाम से जानी गईं.
ऊपरी होंठ: मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के किनारे पर बसे उज्जयिनी में उनके ऊपरी होंठ गिरे. यहां पर उन्हें माता अवंति के नाम से जाना गया.
ठोड़ी: महाराष्ट्र के नासिक में उनकी ठोड़ी गिरी. यहां पर माता सती को देवी भ्रामरी नाम दिया गया.
गाल: आंध्र प्रदेश के सर्वशैल राजमहेंद्री में उनके गाल गिरे और उन्हें विश्वेश्वरी देवी कहा गया.
बायें पैर की उंगली: राजस्थान के बिरात में उनके बायें पैर की उंगली गिरी, यहां पर माता को देवी अंबिका के नाम से जाना गया.
दायां कंधा: पश्चिम बंगाल के हुगली में माता सती का दायां कंधा गिरा और वो देवी कुमारी कहलाईं.
बायां कंधा: देवी सती का बायां कंधा भारत-नेपाल सीमा के मिथिला में गिरा और यहां उन्हें देवी उमा के नाम से जाना गया.
पैर की हड्डी: माता की पैर की हड्डी पश्चिम बंगाल के बीरभूम में गिरी और उन्हें कलिका देवी पड़ा.
कान: कहा जाता है कि कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता सती के दोनों कान गिरे.
शरीर का मध्य हिस्सा: पश्चिम बंगाल के वक्रेश्वर में माता सती के शरीर का मध्य हिस्सा और वो महिषमर्दिनी कहलाईं.
हाथ-पैर: बांग्लादेश के खुलना जिले में देवी सती के हाथ और पैर गिरे और यहां उन्हें यशोरेश्वरी के नाम से जाना गया.
निचला होंठ: पश्चिम बंगाल के अट्टहास उनका निचला होंठ गिरा और वो देवी फुल्लारा कहलाईं.
हार: पश्चिम बंगाल के नंदीपुर में उनका हार गिरा, यहां उन्हें मां नंदनी के नाम से जाना गया.
पायल: श्रीलंका के एक अज्ञान स्थान पर उनकी पायल गिरी. कहा गया कि श्रीलंका के ट्रिंकोमाली में मंदिर पहले था, जो पुर्तगाली बम्बारी में ध्वस्त हो गया.
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घुटने: नेपाल के पशुपति मंदिर के पास उनके दोनों घुटने गिरे और यहां वो देवी महाशिरा कहलाईं.
दायां हाथ: तिब्बत के पास मानसरोवर में देवी सती का दायां हाथ गिरा. यहां पर उन्हें दाक्षायनी के नाम से जाना गया.
नाभि: ओडिशा के उत्कल में माता सती की नाभि गिरी और उन्हें देवी विमला कहा जाने लगा.
माथा: नेपाल के पोखरा में बने मुक्तिनाथ मंदिर में देवी का मस्तक गिरा और यहां उन्हें गंडकी चंडी देवी के नाम से जाना गया.
बायां हाथ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिला में माता का बायां हाथ गिरा. यहां उन्हें बहुला देवी के नाम से जाना गया. देवी का बायां हाथ गिरा था.
दायां पैर: माता सती का दायां पैर त्रिपुरा में गिरा और उन्हें त्रिपुर सुंदरी कहा गया.
दाईं भुजा: बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिला में चंद्रनाथ पर्वर शिखर पर देवी सती की दाईं भुजा गिरी. यहां उन्हें देवी भवानी के नाम से जाना गया.
बायां पैर: पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी में बायां पैर गिरा और वो भ्रामरी देरी कहलाईं.
योनि: असम के गुवाहाटी में नीलांपल पर्वत पर उनकी योनि गिरी और माता सती को देवी कामाख्या के रूप में जाना गया.
दाएं पैर का अंगूठा: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में उनके दाएं पैर का अंगूठा गिरा और उनका नाम देवी जुगाड्या पड़ा.
पैर का अंगूठा: कोलकाता के कालीघाट में देवी सती के पैर का दूसरा अंगूठा गिरा. उस जगह को कालीपीठ और माता को मां कालिका के नाम से जाना गया.
उंगली: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में देवी सती के हाथ की उंगली गिरी और उन्हें वहां मां ललिता कहा जाने लगा.
बाईं जांघ: बांग्लादेश के सिल्हैट जिला में माता सती की बाईं जांघ गिरी और उन्हें वहां देवी जयंती के नाम से जाना गया.
पैर की एड़ी: हरियाणा के कुरुक्षेत्र में उनके पैर की एड़ी गिरी और वो माता सावित्री कहलाईं.
कलाई: अजमेर के पुष्कर में उनकी कलाई गिरी और यहां माता को देवी गायत्री के नाम से जाना गया.
गला: बांग्लादेश में ही उनका गला गिरा और माता सती को महालक्ष्मी के नाम से जाना गया.
अस्थियां: पश्चिम बंगाल में कोपई नदी के तट पर उनकी अस्थियां गिरी. उसे देवगर्भ के रूप में स्थापित किया गया.
दाईं जांघ: बिहार के पटना में माता सती की दाईं जांघ गिरी. उसे पटनेश्वरी शक्तिपीठ के नाम से जाना गया.
त्रिनेत्र: महाराष्ट्र कोल्हापुर देवी सती का त्रिनेत्र गिरा और इसे माता महालक्ष्मी का विशेष स्थान माना गया.
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