Sawan 2022: सावन में आखिर क्यों बढ़ जाता है हरिद्वार का महत्व, जानें कुछ रोचक बातें l
आपने देखा होगा की सावन के महीने में पवित्र नगरी हरिद्वार का महत्व कहीं ज्यादा बढ़ जाता है. यहां जानिए इसकी वजह और हरिद्वार शहर से जुड़ी वो पौराणिक बातें जिनकी जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं हैl
हरिद्वार को सप्तपुरियों में से एक माना जाता है. यहीं से बद्रीनाथ का मार्ग आरंभ होता है. बद्रीनाथ भगवान विष्णु को कहा जाता है. उनका दूसरा नाम हरि भी है. हरि तक पहुंचाने वाला द्वार होने के कारण इस शहर को हरिद्वार के नाम से जाता है. हरिद्वार को मोक्ष प्रदान करने वाली नगरी माना गया है. दुनियाभर से लाखों भक्त हरिद्वार में मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. हरिद्वार में ही राजा दक्ष की नगरी कनखल भी है, इस तरह इस शहर को शिव जी की ससुराल माना जाता है.
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सावन के महीने में हरिद्वार का महत्व कहीं ज्यादा बढ़ जाता है. माना जाता है कि इस दौरान भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं और धरती के संचालन का जिम्मा शिवजी के पास होता है. इस बीच वे हरिद्वार में ही निवास करते हैं. इस बीच यहां गंगा नदी से जल लेकर शिवजी का जलाभिषेक करने से हजारों अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. और यही कारण है कि देशभर से तमाम कांवड़िए इस बीच हरिद्वार आकर जल भरते हैं और शिव जी का अभिषेक करते हैं. सावन का महीना शुरू हो चुका है. इस बीच आइए आपको बताते हैं इस पावन नगरी से जुड़ी कुछ खास बातेंl
हरिद्वार से जुड़े रोचक तथ्य :
– हरिद्वार से ही मां गंगा मैदानी इलाकों तक पहुंचती है इसलिए इसे गंगाद्वार भी कहा जाता है. माना जाता है कि यहां गंगा में डुबकी लगाने से व्यक्ति के पापों का अंत हो जाता है. इस शहर का जिक्र पुराणों में भी मिलता हैl
– कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी थीं. वो स्थान हैं इलाहबाद, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार. इसलिए इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है. हरिद्वार में हर की पैड़ी स्थान पर अमृत छलका था. ये स्थान ब्रह्मकुंड के नाम से भी जाना जाता हैl
– हरिद्वार एक ऐसा पवित्र स्थान माना गया है, जहां नारायण, शिव और ब्रह्मा तीनों विराजते हैं. बद्रीनाथ और केदारनाथ का रास्ता यहीं से गुजरता है, वहीं ब्रह्मकुंड में ब्रह्माजी का निवास माना गया है. इस स्थान को ‘गेटवे ऑफ गॉड्स’ भी कहा जाता हैl
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– कहा जाता है कि हरिद्वार का कनखल वो स्थान है जहां कभी राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. यहीं पर यज्ञ कुंड में माता सती ने अपने पति का अपमान ना कहते हुए अपने प्राणों को त्यागा था. हरिद्वार को लेकर कहा जाता है कि यहां हर की पैड़ी की ऊपरी दीवार पर भगवान विष्णु के पैर का चिन्ह है, जिसे यहां मां गंगा हर समय स्पर्श करती हैंl
– इस स्थान को ऋषि मुनियों की तपभूमि भी कहा जाता है. यहां सप्तऋषियों ने कठिन तपस्या की थी. इसके अलावा इस स्थान पर लक्ष्मण जी ने जूट की रस्सियों का सहारा लेकर नदी को पार किया था. उस स्थान पर आज भी लक्ष्मण झूला बना हुआ है , जिसे प्रतिदिन लगभग हजारों की संख्या में लोग देखने आते हैं l
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