Pradosh Vrat 2022: कब पड़ेगा साल का आखिरी प्रदोष व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि , व्रत कथा एवं शुभ मुहूर्त ।
देवों के देव महादेव और माता पार्वती का आशीर्वाद बरसाने और मनोकामनाओं को पूरा करने वाला साल का आखिरी प्रदोष व्रत कब पड़ेगा और क्या है इसकी पूजा विधि, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
Pradosh Vrat Kab Hai: हिंदू धर्म में कल्याण के देवता माने जाने वाले भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष व्रत एवं प्रदोष काल दोनों ही बहुत शुभ और फलदायी माना गया है. यही कारण है कि शिव भक्त अपने आराध्य की पूजा करते समय इन दोनों का विशेष ख्याल रखते हैं.
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पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर पड़ने वाला प्रदोष व्रत साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्टों को दूर और कामनाओं को पूरा करने वाला माना गया है. भगवान शिव संग माता पार्वती का आशीर्वाद बरसाने वाला साल का आखिरी प्रदोष व्रत 21 दिसंबर 2022 को पड़ेगा. आइए प्रदोष व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और जरूरी नियम को विस्तार से जानते हैं.
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त :
पंचांग के अनुसार भगवान शिव की कृपा बरसाने वाली साल की आखिरी प्रदोष तिथि 21 दिसंबर 2022 को पूर्वाह्न 00:45 बजे से प्रारंभ होकर रात्रि 10:16 बजे तक रहेगी. इस दिन भगवान शंकर और पार्वती की पूजा के लिए सबसे उत्तम माना जाने वाला प्रदोष काल सायंकाल 05:29 से 08:13 बजे तक रहेगा.
चूंकि जिस दिन यह पावन व्रत पड़ता है, उसी के नाम से जाना जाता है, ऐसे में बुधवार के दिन पड़ने पर यह बुध प्रदोष व्रत कहलाएगा. जिसे करने पर भगवान शिव की कृपा से साधक को बुद्धि, विवेक और करिअर-कारोबार में तरक्की का विशेष आशीर्वाद मिलता है.
प्रदोष व्रत की पूजा विधि:
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सनातन परंपरा में किसी भी व्रत या पूजा को करने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करने पर ही व्यक्ति की पूजा या व्रत सफल होता है. प्रदोष व्रत की पूजा का पूरा फल पाने के लिए इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान करने के बाद विधि-विधान से शिव की पूजा करें. इसके बाद पूरे दिन शिव का ध्यान या मंत्र का मन में जप करते हुए अपने अन्य कार्य करें. इसके बाद शाम के समय एक बार यदि संभव हो तो स्नान करें या फिर स्वच्छ कपड़े पहनकर प्रदोष काल में महादेव और माता पार्वती की पूरी विधि-विधान से पूजा करें.
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ फल पाने के लिए महादेव की प्रिय चीजें जैसे बेलपत्र, शमीपत्र, धतूरा, रूद्राक्ष, आदि जरूर चढ़ाएं. इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा कहें और उसके बाद रुद्राक्ष की माला से शिव मंत्र का जाप करें. पूजा के अंत में उनकी आरती जरूर करें.
ऐसी है सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा:
सोम प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था।
शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
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