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Pitra Paksha Puja : पितरों के लिए श्राद्ध करते समय हमेशा याद रखें 10 जरूरी नियम ,ना करें कोई भूल

Myjyotish Expert Updated 12 Sep 2022 03:31 PM IST
पितरों के लिए श्राद्ध करते समय हमेशा याद रखें 10 जरूरी नियम ,ना करें कोई भूल
पितरों के लिए श्राद्ध करते समय हमेशा याद रखें 10 जरूरी नियम ,ना करें कोई भूल - फोटो : google photo
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 पितरों के लिए श्राद्ध करते समय हमेशा याद रखें 10 जरूरी नियम ,ना करें कोई भूल


सनातन परंपरा (हिंदू धर्म )  में पितरों की मुक्ति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए जिस श्राद्ध और तर्पण का विधान है, उसे पितृ पक्ष के दौरान करने से पहले जरूर जान लें ये जरूरी नियम.

हिंदू धर्म में भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पितरों की पूजा और तर्पण से जुड़ा पितृ पक्ष होता है. पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए इन 16 दिनों तक पितरों को श्रद्धा का तर्पण यानि जल देना चाहिए. मान्यता है कि पितृपक्ष में श्रद्धा के साथ पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण, श्राद्ध, दान आदि करने पर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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शास्त्रों में पितरों की मुक्ति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध से जुड़े कुछ जरूरी नियम बताए गए हैं. आइए हम आपको बताते हैं कि पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध और तर्पण करते समय हमें किन नियमों का पालन करना चाहिए.

अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर तर्पण व श्राद्ध के लिए कौन सा समय या तिथि श्रेष्ठ है.शास्त्रों के अनुसार कुतुप बेला में जो तिथि होती है, उसी तिथि का श्राद्ध होता है.कुतुप बेला दिन प्रात:काल 11:36 से 12:24 बजे तक के समय को कहते हैं.

मान्यता है कि कुतुपकाल में किया गया न सिर्फ श्राद्ध बल्कि पितरों के लिए दिया गया भी बहुत श्रेष्ठ होता है.ऐसे में मध्याह्नकाल में पितरों के लिए दान अवश्यक करना चाहिए.

शास्त्रों के अनुसार पितरों के लिए श्राद्ध या तर्पण करने का पहला अधिकार बड़े पुत्र का होता है. जिसके न होने पर उसका छोटा बेटा या बेटी या फिर बेटी-दामाद फिर नाती भी उनके लिए श्राद्ध कर सकता है.

यदि किसी का कोई पुत्र न हो तो उसकी अविवाहित बेटी भी अपने माता-पिता का श्राद्ध कर सकती है.

यदि किसी व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसकी बहू भी अपने सास-ससुर या अपने पति के लिए श्राद्ध कर सकती है.

पितरों के श्राद्ध के लिए पूर्वाह्न की बजाय अपराह्न का समय श्रेष्ठ माना गया है. जबकि पितरों का श्राद्ध, तर्पण भूलकर भी शाम या रात के समय नहीं करना चाहिए.

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शास्त्रों के अनुसार पितरों के लिए कभी भी श्राद्ध दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए. यदि किसी के पास स्वयं का मकान न हो तो वह मंदिर, तीर्थ स्थान आदि पर जाकर श्राद्ध कर्म कर सकता है, क्योंकि इसपर किसी का अधिकार नहीं होता है.

पितृपक्ष के दौरान विवाह, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए.

पितृपक्ष के दौरान पूरी तरह से ब्रह्म्मचर्य का पालन करना चाहिए और तामसिक चीजों का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए.

श्राद्ध में किए जाने वाले दान या करवाए जाने वाले भोजन का अभिमान नहीं करना चाहिए

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