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पितृदोष का कुंडली में योग -
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी जातक की कुंडली में पितृदोष होता है तो अनेक प्रकार की परेशानियों, हानियां और दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पितृदोष के कारण घर में कलह, अशांति रहती हैं। और घर से रोग और पीड़ा पीछा नहीं छोड़ती है। घर के सदस्यों की आपस में बनती नहीं है अर्थात घर में आपसी मतभेद बना रहता है तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों में बाधाएं उत्पन्न होती रहती हैं। पितृदोष के कारण घर में अकाल मृत्यु का वह बना रहता है । संकट अनहोनियां , अमंगल का बना रहता है। तथा संतान प्राप्ति में भी विलंब होता है। धन का अभाव भी बना रहता है अनेक प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता है पितृदोष में ऐसी स्थिति ग्रह की बन जाती है जब सूर्य ग्रह शनि या राहु के साथ एक ही भाव में विराजित होते हैं तो व्यक्ति की निर्णय शक्ति पर असर पड़ता है।
पितृदोष लगने के कारण-
परिवार में अकाल मृत्यु हो जाने से, अर्थात् हमारे घर में बड़े बुजुर्ग दादा, परदादा हमारे खानदान के अंदर कोई व्यक्ति जो मर जाता है उसकी आत्मा जब तृप्त नहीं होती है तो ऐसे में हमारे जीवन में कष्ट आता है क्योंकि वह आत्मा तृप्त नहीं हुई है अर्थात उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई है। आत्मा का मोक्ष स्थान विष्णु लोक में जाना होता है सबसे पहले जो जीवात्मा प्राण की है वह प्रेत योनि में जाती है। प्रेत योनि से आत्मा को जाना होता है पितृ योनि में, पितृ योनि से जीवात्मा विष्णु योनि तक जाती है। ऐसे में क्या होता है कि हमारे किए गए जीवात्मा के लिए गए पाप और पुण्य निर्धारित करता है कि आत्मा प्रेत अवस्था में रहेगी, पितृ अवस्था में रहेगी, या उससे आगे जाएगी या उससे आगे जाएगी अगर जीवन में पुण्य बहुत अच्छे हैं तो वह सीधा विष्णु लोक को जाएगी। यदि पुण्य कम है तो वह पितर लोक को प्राप्त हो जाएगी यदि पुण्य से भी कम है तो वह आत्मा प्रेत आत्मा के रूप में रहेगी। इसलिए पितृदोष अकाल मृत्यु अपने माता पिता अपमान करने के कारण या माता-पिता के मरने के बाद उचित क्रिया कर्म और श्राद्ध ना करने के कारण पितरों का दोष लगता है जिसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, शादी में रुकावट, वंश वृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, धन में बरकत ना होना तथा सभी सुख सुविधा होने के बाद भी मन में असंतोष रहना यही पितृदोष के कारण है।
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