पितृ पक्ष या पितरपख, 16 दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है। गीता जी के अध्याय ९ श्लोक २५ के अनुसार पितर पूजने वाले पितरों को, देेव पूजने वाले देवताओं को और परमात्मा को पूजने वाले परमात्मा को प्राप्त होते हैं अर्थात् मनुष्य को उसी की पूजा करने के लिए कहा है जिसे पाना चाहता है अर्थात समझदार इशारा समझ सकता है कि परमात्मा को पाना ही श्रेष्ठ है।
हिंदू धर्म अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने हिस्से का भाग अवश्य किसी ना किसी रूप में ग्रहण करते है। सभी पितृ इस समय अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं। भोजन में जो भी खिलाया जाता है, वह पितृों तक पहुंच ही जाता है। अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की शांति व मोक्ष के लिए किया जाने वाला दान व कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। जिसने हमें जीवन दिया। इस प्रकार तीन पीढ़ियों तक के लिए किया जाने वाला यज्ञ, पिंडदान और तर्पण ही श्राद्ध कर्म कहलाता है। श्राद्ध के दिनों में दान-पुण्य किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से पूर्वज खुश होते हैं औप आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते है। इस बार पितृपक्ष 20 सितंबर से शुरू हुआ है जो कि 6 अक्टूबर तक रहेगा।
पितृ दोष मनुष्य की कुंडली में मौजूद कई तरह के दोषों में से एक होता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष होता है वह जीवन में कठिनाइयों और बहुत सारे उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है। ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद विनोद सोनी पोद्दार इस बारे में कहते हैं, 'यदि कुंडली में पितृ दोष है तो कई तरह की परेशानियां जीवने में आ सकती हैं। बहुत जरूरी है कि आप पितृ दोष के लक्षण को समझें और उसके निवारण के लिए उपाय करें।'
पितृ दोष क्या होता है ?
पंडित जी बताते हैं, ' जब हमारे पितरों को यह आभास होता है कि हम उन्हें भूल गए हैं या फिर उनके प्रति श्रद्धा नहीं रखते हैं तो वह हमसे नाराज हो जाते हैं और उनके श्राप से कुंडली में पितृ दोष लगता है।'
किसी भी शुभ कार्य को करने से पूर्व बात कीजिए ज्योतिषी से