Paush Purnima 2023: जानें पौष पूर्णिमा पर कैसे करें पूजा और कब है शुभ मुहूर्त
पौष मास की पूर्णिमा 6 जनवरी शुक्रवार को मनाई जाएगी पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी कलाओं से अमृत का वर्षा करता है. पौष की पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में महीने के स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है. इसके साथ ही इस दिन खाने की चीजें और वस्त्र इत्यादि का दान करने का भी विधान रहा है.
इस दिन किया गया दान कार्य जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला होता है. इस दिन सूर्य देव को अर्घ देने से आयुष की प्राप्ति होती है. यदि किसी कारणवश इस दिन धर्म स्थलों पर जाकर स्नान न हो पाए तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिला कर स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.
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इसके साथ ही इस दिन चंद्रमा को दिया जाने वाला अर्घ्य पितरों तक पहुँचता है जो पितृ शांति भी प्रदान करता है. पौष पूर्णिमा पर चंद्रमा का प्रभाव काफी मजबूत माना गया है. इस दिन नीरोग रहने के लिए औषधियों को चंद्रमा की रौशनी में खाने से बीमारियों से राहत मिलती है.
पौष पूर्णिमा पर ग्रह नक्षत्र योग
इस दिन चंद्रमा आद्रा नक्षत्र में होगा. जिससे पद्मनाम का शुभ योग पूरे दिन रहेगा. इस दिन ब्रह्म योग और इंद्र नाम के शुभ योग रहेंगे. वही सूर्य और बुध धनु राशि में होने से बुधादित्य योग और तिथि वार नक्षत्र से मिलकर सर्वार्थसिद्धियोग बनेगा. गुरु और शनि अपनी ही राशि में गोचर कर रहे होंगे. ग्रह नक्षत्रों यह स्थिति सुख और समृद्धि देने वाली होगी. साथ ही इन शुभ संयोगों में किए गए स्नान दान का कई गुना फल भी प्राप्त होंगे.
पौष पूर्णिमा महत्व
पौष पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि इसी दिन सूर्य, चंद्रमा की पूजा विशेष संयोग में होती है. इसे शाकंभरी पूर्णिमा भी कहते हैं. पौष की पूर्णिमा का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रमा हैं. इस दिन चंद्रमा अपनी कलाओं से पूर्ण होता है.
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मान्यता है कि पौष पूर्णिमा की रात महालक्ष्मी की पूजा करने से धन धान्य की कमी नहीं होती है. सूर्योदय से पूर्व स्नान, दान और तप अधिक फल देने योग्य होते हैं. इस दिन स्नान-दान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है. साल में पौष की पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि इसी दिन सूर्य, चंद्रमा की पूजा विशेष संयोग में होती है.
शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा पर सुबह सूर्योदय से पूर्व सूर्य को जल चढ़ाने के बाद इस व्रत की शुरुआत होती है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा कर के व्रत संपन्न होता है. मान्यता है कि सूर्य-चंद्र पूजा के विशेष संयोग में स्नान-दान करने से किसी व्यक्ति के सभी दुःख दूर हो जाते हैं. घर में लक्ष्मी का आगमन होता है और साधक को मोक्ष मिलता है.
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