परिवर्तिनी एकादशी एकादशी को अनेको नामों से जाना जाता है और इस एकादशी का महत्व भी बहुत ही प्रभावशाली माना गया है. इस एकादशी को पदमा एकादशी, पार्श्व एकादशी इत्यादि नामों से पुकारा जाता है. इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन विधि विधान के साथ संपन्न होता है. चातुर्मास में आने वाली ये एकादशी भक्तों के समस्त कष्टों को दूर करने वाली होती है. इस साल पदमा(पद्मा) एकादशी 17 सितंबर, शुक्रवार के दिन को मनाई जाएगी. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. पार्श्व एकादशी पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में 'भाद्रपद' मास के शुक्ल पक्ष की 'एकादशी' पर पड़ने वाले पुण्य व्रतों में से एक है.
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परिवर्तिनी एकादशी पर महत्वपूर्ण समय
एकादशी तिथि 16 सितंबर, 2021 9:36 से शुरू
एकादशी तिथि 17 सितंबर 2021 को सुबह 8:08 बजे समाप्त होगी.
पारण का समय 18 सितंबर, 6:18 पूर्वाह्न - 18 सितंबर, 6:54 पूर्वाह्न
परिवर्तिनी एकादशी
इस एकादशी का समय 'दक्षिणायन एकादशी पुण्यकालम' के समय यानी देवी-देवताओं के रात्रि के समय होता है. यह एकादशी व्रत 'चातुर्मास' अवधि के दौरान पड़ता है, इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है. यह एक लोकप्रिय धारणा है कि पद्म एकादशी व्रत का पालन करने से भक्त को उसके सभी पापों की क्षमा प्राप्त हो जाती है यह एक प्रकार से प्रायश्चिक का स्वरुप बनती है. इस एकादशी पूरे भारत में अपार शृद्धा, समर्पण और उत्साह के साथ मनाया जाता है.
परिवर्तिनी एकादशी के दौरान अनुष्ठान व पूजा पाठ
पार्श्व एकादशी के दिन भक्त उपवास रखते हैं, भक्त एक बार भोजन कर लेते हैं. भगवान विष्णु की पूजा करने और ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद व्रत संपूर्ण होता है. पार्श्व एकादशी के दिन अनाज, चावल और बीन्स खाने की अनुमति नहीं है, यहां तक कि उन लोगों के लिए भी जो कोई व्रत नहीं रखते हैं. पार्श्व एकादशी के व्रत का अर्थ केवल भोजन से परहेज करना नहीं है, बल्कि इस व्रत के पालनकर्ता को ऐसे शुभ कार्य करने चाहिए जो उसे भगवान के करीब लाते हों, इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की स्तुति में वैदिक मंत्रों या भजन व ग्रंथ इत्यादि का पाठ करना उत्तम होता है.
एकादशी का महत्व:
यह एकादशी को प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है, ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी को करने से सुख, धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति संभव हो पाती है. इसके अलावा यह अतीत के पापों से छुटकारा दिलाती है. व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के निरंतर चक्र से भी मुक्त प्राप्त होती है. इस एकादशी व्रत का पालन करने से भक्तों को आध्यात्मिक लाभ होता है और साथ ही यह इच्छा शक्ति को मजबूत करने में भी मदद करता है. परिवर्तनी एकादशी को अन्य एकादशी व्रतों की तुलना में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह 'चातुर्मास' अवधि के दौरान आती है और इस समय के दौरान संचित 'पुण्य' या गुण सामान्य महीनों की तुलना में अधिक मूल्य के होते हैं. इस एकादशी के महत्व को भगवान कृष्ण और राजा युधिष्ठिर के बीच बातचीत के रूप में 'ब्रह्मा पुराण' में भी दर्शाया गया है.
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