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व्यक्ति के पापों और परेशानियों को मिटा देता है अजा एकादशी का व्रत , जानिए व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें

my jyotish expert Updated 02 Sep 2021 09:48 AM IST
ajaa ekadashi vrat
ajaa ekadashi vrat - फोटो : Google
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर मास में दो एकादशी के व्रत होते हैं । सभी एकादशी के व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और हिंदू पंचांग के अनुसार इसे सबसे श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना जाता है । हर माह की एकादशी को अलग - अलग नाम से जाना जाता है । भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तिथि के दिन पढ़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है । शास्त्र अनुसार एकादशी के व्रत को मोक्षदायी बताया गया है । एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना विधि - विधान के साथ पूर्ण की जाती है व मान्यता यह बताई जाती है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है व उसकी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं । हिंदू पंचांग अनुसार भादो मास में पढ़ने वाली अजा एकादशी का महत्व बेहद ही अधिक बताया जाता है । इस साल अजा एकादशी का व्रत 3 सितंबर दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है । कैसे बताया जाता है कि जो व्यक्ति अजा एकादशी का व्रत रखते हैं उनको मृत्यु मिलने के बाद विष्णु लोग में जगह मिल जाती है । इस व्रत को रखने से व्यक्ति की सभी पापों को नष्ट होता है व उसकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होते हैं । शास्त्र के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति के अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या और तीर्थ दान में वृद्धि होती है ।

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पूजा का शुभ मुहूर्त 

एकादशी तिथि प्रारंभ होने का समय :- 02 सितंबर 2021 सुबह 06 बजकर 21 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त होने का समय :- 03 सितंबर 2021 सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर
अजा एकादशी पारण का समय :-  04 सितंबर 2021 सुबह 05 बजकर 30 मिनट से सुबह 08 बजकर 23 मिनट तक

पूजा की विधि 

अजा एकादशी वाले दिन लोगों को सुबह ही सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए इसके बाद स्वच्छ वस्त्र का धारण करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान पूजन और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। ध्यान पूजन के वक्त माता लक्ष्मी जी की नारायण जी के साथ वाली तस्वीर रखनी चाहिए व पूजा की थाल में रोली,  पीला चंदन , सफेद चंदन , अक्षत , पुष्प , पंचामृत , फल और नैवेद्य रखकर ध्यान पूजन में इन सभी सामग्रियों को अर्पित करें व इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ समाप्त कर नारायण और माता लक्ष्मी की आरती करें । भक्तों को अपनी क्षमता अनुसार ही फलहार या निर्जल व्रत रखना चाहिए । अगले दिन आप किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य अनुसार ही उन्हें दान - दक्षिणा दें । इसके बाद आप अपना व्रत खोलें , व्रत खोलते दौरान आप कम बोले और अधिक से अधिक भगवान का ध्यान करें । इसी दौरान आप किसी से भी झूठ ना बोला और ना ही किसी व्यक्ति की बुराई करें ।

अजा एकादशी व्रत का महत्व 

शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को कठिन तपस्या, तीर्थों में दान - स्नान और      के सामान पुण्यदायी बताया जाता है । ये व्रत व्यक्ति के समस्त पापों का नाश करता है व साथ ही साथ घर में सुख - समृद्धि और खुशहाली का पाठ भी पढ़ाता है । लेकिन इस व्रत के दौरान नारायण जी के साथ - साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए । मान्यता यह बताई जाती हैं कि लक्ष्मी जी और नारायण जी की पूजा साथ करने से माता लक्ष्मी और नारायण दोनों का ही आशीर्वाद व्यक्ति को प्राप्त होता है।

अजा एकादशी व्रत कथा 

प्राचीन काल में हरीश चंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा एक राज्य पर राज करा करते थे । उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन को त्याग दिया था साथ ही अपनी पत्नी , पुत्र तथा स्वयं को भी बेच दिया ।
वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करते हुए मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता था । लेकिन कोई भी स्थिति उससे सत्य वचन नहीं कर पाई । इस तरह राजा के कई वर्ष बीत गए । एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि तभी गौतम ऋषि आ गए । राजा ने उन्हें देख प्रणाम किया और अपनी सारी दुख भरी कहानी उन्हें बतला दी ।
राजा हरिश्चंद्र की बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी आएगी । उस दिन तुम व्रत रख उसे पूर्ण निष्ठा और विधि पूर्वक से संपन्न करना । व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे।
इसी प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय वहां से चले गए । राजा ने उनके कहे अनुसार अजा एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत रख जागरण किया । इस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए व व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः उसका राज्य मिल गया और अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया ।


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