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Panchami Shradh : पंचमी के श्राद्ध को कुंवारा पंचमी क्यों कहा जाता है? जानिए इस दिन का महत्व

Myjyotish Expert Updated 14 Sep 2022 12:19 PM IST
Panchami Shradh : पंचमी के श्राद्ध को कुंवारा पंचमी क्यों कहा जाता है? जानिए इस दिन का महत्व
Panchami Shradh : पंचमी के श्राद्ध को कुंवारा पंचमी क्यों कहा जाता है? जानिए इस दिन का महत्व - फोटो : google
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Panchami Shradh : पंचमी के श्राद्ध को कुंवारा पंचमी क्यों कहा जाता है? जानिए इस दिन का महत्व 


इस वर्ष पितृ पक्ष में कुंवर पंचमी 14 सितंबर को मनाई जाएगी. कुंवारा पंचमी के दिन अविवाहित और पंचमी के दिन मरने वाले पितरों का श्राद्ध किया जाता है. कुंवारापंचमी पर श्राद्ध कर्म करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है.

श्राद्ध कार्य हिंदू धर्म का एक अभिन्न अंग है जन्म से मृत्य तक समस्त संस्कारों का विशेष महत्व रहा है. मृत्यु के पश्चात पितरों की शांति हेतु किया जाने वाला श्राद्ध कार्य एक उत्तम शुभदायक कर्म होता है. 

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पंचमी के श्राद्ध को क्यों कहते हैं अविवाहित पंचमी
इस साल पितृ पक्ष का समय 10 सितंबर से 25 सितंबर तक होगा. इस समय के दौरान कई तरह से श्राद्ध पक्ष को मनाया जाएगा. इस समय पर मृतकों की शांति के लिए दान, कर्म, पूजा पाठ के कार्य होंगे. पितृ पक्ष की प्रतेय्क तिथि श्राद्ध कार्य हेतु होती है. इस में भी कुछ तिथियां विशेष रुप से होती हैं क्योंकि इस समय के दौरान श्राद्ध करने का विधान कुछ विशेष परिस्थितियों में गुजरे लोगों के लिए भी होता है. इसी में एक तिथि पंचमी तिथि भी होती है. 

आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की पंचमी के श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. इसे कुंवार पंचमी भी कहते हैं. इस दिन श्राद्ध उन्हीं लोगों के लिए किया जाता है जिनकी या तो पंचमी तिथि को मृत्यु हो गई हो और पंचमी तिथि का समय उन्हें प्राप्त हुआ है. इसके अतिरिक्त वे लोग जो अविवाहित रहे. जिनके विवाह नहीं हुए इन्हें अविवाहित पिता भी कहा जाता है. इसी कारण से इसे अविवाहित पंचमी के नाम से भी पुकारा जाता है. 

इस समय पर पिंडदान कुंवर पंचमी पर राहुकाल को छोड़कर किसी भी समय किया जा सकता है. इस साल कुंवर पंचमी बुधवार, 14 सितंबर को है. आइए जानते हैं कुंवर पंचमी के दिन श्राद्ध करने की विधि.

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पंचमी श्राद्ध पर क्या करें?
पंचमी तिथि पर अविवाहित पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इस दिन प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. पितरों  के लिए भोजन प्रसाद तैयार करना चाहिए. इस दिन खीर का भोग बनाया जाता है. इसके बाद किसी कुंवारे ब्राह्मण को बुलाकर पितरों की पूजा करवाते हैं. गाय, कौए, कुत्ते, चींटी और पीपल देवता को भोजन कराया जाता है इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराते हैं. भोजन पश्चात ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देया जाता है तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. 

इस दिन दान कार्य करना भी बहुत शुभ माना जाता है. आप अपनी क्षमता के अनुसार कोई भी वस्तु गरीब और जरूरतमंद को दान कर सकते हैं. आप मिठाई, फल या कोई खाद्य पदार्थ भी दान कर सकते हैं. इस दिन पीपल, बरगद, तुलसी या अशोक के पेड़ लगाना भी बहुत शुभ माना जाता है.

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