नवरात्रि के मनोवांछित फल के लिए पूजा में दिशाओं का रखें ख्याल
नवरात्रि पूजा के समय कई बातों का ध्यान में रखते हुए यदि पूजा की जाए तो यह बेहद उत्तम फलदायी होती है. नवरात्रि में शक्ति समेत त्रिदेव सहित, रूद्र, समस्त नदियों, समुद्रों तथा करोड़ों देवताओं को स्मरण किया जाता है. ऎसे में पूजा की दशा का भी बहुत ध्यान रखना होता है. ईशान कोण जिसे भक्ति एवं पूजन के लिए बहुत शुभ माना जाता है. उत्तर-पूर्व दिशा का स्थान जल और देवता का स्थान माना गया है.
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चैत्र मास की प्रतिपदा से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. मनोवांछित फल पाने के लिए उपासक नौ दिनों तक आदिशक्ति की पूजा करना उत्तम होता है इसी के साथ दिशाओं का ध्यान रखते हुए पूजा करना उत्तम होता है. नवरात्रि का पर्व पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. सभी भक्तों को माँ के रूप में आदिशक्ति का प्यार भरा आशीर्वाद मिलता है. इसके बाद भी अगर मां दुर्गा की पूजा करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखा जाए तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. पूजा में दिशा का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि में मनोवांछित फल पाने के लिए
ईशान कोण में पूजा का स्थामन
नवरात्रि पूजा में कलश स्थापना के साथ ही पूजा का आरंभ होता है. ऎसे में उत्तर-पूर्व दिशा में नवरात्रि की पूजा करना अच्छा होता है. यहीं पर कलश स्थापित करना भी उत्तम माना जाता है. सनातन धर्म में कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और शुभ कामनाओं का प्रतीक माना जाता है. त्रिदेव सहित कलश में रुद्र, समस्त नदियां, समुद्र तथा करोड़ों देवता स्नान करते हैं. उत्तर-पूर्व का स्थान इन के लिए उत्तम होता है. इस स्थान दिशा को ईश्वर का स्थान माना जाता है और यहां सबसे सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है. इसलिए पूजा करते समय इस दिशा में मां की प्रतिमा या कलश की स्थापना करनी चाहिए.
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पूजा करते समय साधक का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए.
देवी मां का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा माना गया है ताकि पूजा करते समय साधक का मुख दक्षिण या पूर्व दिशा में रहे. शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली पूर्व की ओर मुख करके पूजा करने से हमारी बुद्धि जागृत होती है और दक्षिण की ओर मुख करके पूजा करने से उपासक को शांति मिलती है.कलश स्थापना की विधि शुरू करने से पहले सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात दिशाओं को पूजते हुए उपासना आरंभ करना उत्तम फलदायी होता है.
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