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Navami Shradh 2022: पितृपक्ष में कब पड़ेगा मातृ नवमी का श्राद्ध, जानें इसकी पूरी विधि और महत्व

Myjyotish Expert Updated 16 Sep 2022 09:47 AM IST
Matra Navami 2022: पितृपक्ष में कब पड़ेगा मातृ नवमी का श्राद्ध, जानें इसकी पूरी विधि और महत्व
Matra Navami 2022: पितृपक्ष में कब पड़ेगा मातृ नवमी का श्राद्ध, जानें इसकी पूरी विधि और महत्व - फोटो : google
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Navami Shradh 2022: पितृपक्ष में कब पड़ेगा मातृ नवमी का श्राद्ध, जानें इसकी पूरी विधि और महत्व


पितृ पक्ष के 16 दिनों में आखिर नवमी तिथि के दिन किया जाने वाला श्राद्ध आखिर क्यों खास होता है और यह किस दिन किया जाएगा, आइए हम आपको बताते हैं इसका धार्मिक महत्व और विधि. 

हिन्दू धर्म में पितरों या फिर कहें दिवंगत हो चुके परिजनों के मोक्ष की कामना के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि करने की परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों के लिए श्रद्धा के साथ श्राद्ध करने पर न सिर्फ उन्हें मुक्ति मिलती है, बल्कि हमें उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. 

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पितृपक्ष में दिवंगत लोगों की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष के 16 दिनों में मातृ नवमी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध विशेष क्यों माना गया है, यह इस साल कब पड़ेगा और इसे करने की विधि क्या है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.

मातृ नवमी श्रााद्ध की तारीख – 19 सितंबर 2022 मातृ नवमी श्राद्ध का कुतुप मूहूर्त – प्रात:काल 11:50 से दोपहर 12:39 बजे तक है.

कब करें मातृ नवमी का श्राद्ध
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि 18 सितंबर 2022 को सायंकाल 04:32 बजे से प्रांरभ होकर 19 सितंबर 2022 को सायंकाल 07:01 बजे तक रहेगी. इस दिन पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध हेतु सबसे उत्तम समय मानी जाने वाली 19 सितंबर को प्रात:काल 11:50 से दोपहर 12:39 बजे तक रहेगी. ऐसे में 19 सितंबर 2022 को इसी समय में मातृ नवमी का श्राद्ध करने की कोशिश  करें.

कैसे करना चाहिए मातृ नवमी का श्राद्ध
मातृ नवमी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और उसके बाद साफ कपड़े पहनकर कुतुप बेला में पितरों का विधि-विधान से श्राद्ध करें. इसके लिए सबसे पहले किसी एक सफेद चौकी या मेज पर दिवंगत महिला की तस्वीर रखें और यदि उनकी तस्वीर न हो तो वहां पर पूजा की सुपारी रख दें और उस पर फूल, तुलसी और गंगजल चढ़ाएं और उनकी फोटो के आगे तिल का दीपक और धूपबत्ती जलाएंं.

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स पूजा के बाद यदि संभव हो तो गरुड़ पुराण, गजेन्द्र मोश्र या भगवत गीता के नौवें अध्याय का पाठ करें अथवा सुनें. इसके बाद श्राद्ध के भोजन को दक्षिण दिशा में रखें और ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसे सामर्थ्य के अनुसार दान करें. इस दिन पितरों को तांबे के लोटे में जल और काला तिल मिलाकर तर्पण करना बिल्कुल न भूलें.

मातृ नवमी श्रााद्ध का महत्व
हिंदू धर्म में पितृपक्ष में पड़ने वाली मातृ नवमी के दिन परिवार से जुड़ी उन दिवंगत महिलाओं जैसे दादी, मां, बहन, बेटी आदि के लिए विशेष रूप से श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु सुहागिन के रूप में होती है. इसे अविधवा श्रााद्ध भी कहते हैं.

मान्यता है कि इस दिन परिवार से जुड़ी महिलाओं के लिए विधि-विधान से श्राद्ध करने पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिससे प्रसन्न होकर वे अपना आशीर्वाद आपके घर पर बरसाती हैं और आपके घर में खुशियां ही खुशियां होंगी.

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