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लेकिन हमारे एक हिंदू ग्रंथ गरुड़ पुराण में आप पढ़ेंगे तो आपको इन बातों के बारे में जवाब मिल जाएगा। क्योंकि गरुड़ पुराण एक ऐसा महापुराण है, जिसमें व्यक्ति के जीवन को और बेहतर बनाने के विभिन्न तरीकों से लेकर व्यक्ति के मृत्यु के बाद जीवात्मा की तमाम परिस्थितियों का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है। तथा सनातन धर्म से ही किसी की मृत्यु के बाद 10 दिनों तक उसके पिंडदान का रिवाज चलता आ रहा है। तो आइए आज हम जानेंगे कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद यह 10 दिनों तक पिंडदान क्यों किया जाता है तथा इसके बारे में गरुड़ पुराण में क्या लिखा है।
• अंगूठे के आकार के बराबर जीवात्मा
गुरु पुराण के अनुसार यह माना जाता है कि व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके प्राण लेने के लिए यमराज के दूत आते हैं। तथा यह भी माना जाता है कि अंतिम वक्त में जो मनुष्य जितना ज्यादा दुनिया की मोह माया में फंसा रहता है उसे प्राण त्यागने में उतना ही कष्ट झेलना पड़ता है। तथा यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति मृत्यु के सत्य को स्वीकार कर लेता है, उसे प्राण त्यागने में ज्यादा कष्ट नहीं झेलना पड़ता है। गरुड़ पुराण के अनुसार यह माना जाता है कि मनुष्य के मरने के बाद उसकी आत्मा अंगूठे के आकार के बराबर हो जाती है तथा जिसे पकड़ के यमदूत यमलोक ले जाते हैं।
• यमलोक से लौटकर मृत्यु लोक पर वापस आती है आत्मा
गरुड़ पुराण के अनुसार यह माना जाता है कि यमलोक पृथ्वी लोक से 99 हजार योजन दूर है। तथा वहां यमदूत जीवात्मा को उसके कर्म और लेखा-जोखा देखते हैं। तथा उसके बाद आत्मा को फिर से उसके घर में भेज दिया जाता है। लेकिन यह माना जाता है कि यमराज के दूत उसे मुक्त नहीं करते हैं। इस कारण आत्मा भूख प्यास आदि के कारण तड़पती रहती है। और मृत्यु के समय उसके पुत्र या परिवार जन जो पिंडदान करने जाते हैं। उनसे भी उनकी तृप्ति नहीं हो पाती है।
• 10 दिन तक पिंडदान करने से मिलती जीवात्मा को शक्ति
व्यक्ति की मृत्यु के बाद मृतक के परिजन 10 दिनों तक नित्य उसका पिंडदान करते हैं। क्योंकि यह माना जाता है कि ऐसा करने से आत्मा को चलने की शक्ति प्राप्त होती है। और 13 वें दिन आत्मा उसी ताकत से फिर से यमलोक का सफर तय कर पाती है। तथा यह माना जाता है कि यदि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका पिंडदान ने किया जाए तो उसकी जीवात्मा को ताकत प्राप्त नहीं होती है। और यह भी माना जाता है कि इस स्थिति में यमराज के दूत उसे घसीट कर यमलोक की ओर ले कर जाते हैं। और यमलोक पहुंचने के बाद यमराज जीवात्मा को उसके कर्म के आधार पर उसका न्याय करते हैं। और इस बात का निर्धारण करते हैं कि आत्मा को स्वर्ग , नर्क या पितृलोक इन तीनों स्थान में से कहां भेजा जाएगा। तथा वहां पर जाकर आत्मा को अपने कर्मों का भुगतान करना पड़ता है। कठुआ के भुगतान के के बाद आत्मा फिर से नया शरीर धारण करने के लिए तैयार हो जाती है तथा मृत्यु लोक में चली जाती है अर्थात पृथ्वी लोक। और यह कर्म तब तक चलता रहता है जब तक की व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती है।
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