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हिंदू धर्म अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने हिस्से का भाग अवश्य किसी ना किसी रूप में ग्रहण करते है। सभी पितृ इस समय अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं। भोजन में जो भी खिलाया जाता है, वह पितृों तक पहुंच ही जाता है। अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की शांति व मोक्ष के लिए किया जाने वाला दान व कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। जिसने हमें जीवन दिया। इस प्रकार तीन पीढ़ियों तक के लिए किया जाने वाला यज्ञ, पिंडदान और तर्पण ही श्राद्ध कर्म कहलाता है। श्राद्ध के दिनों में दान-पुण्य किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से पूर्वज खुश होते हैं औप आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते है। इस बार पितृपक्ष 20 सितंबर से शुरू हुआ है जो कि 6 अक्टूबर तक रहेगा।
क्यों है दोपहर का समय उत्तम
पितृ पक्ष के दौरान पितरों को तर्पण के जरिए जल और श्राद्ध के जरिए अन्न अर्पित किया जाता है. श्राद्ध के लिए सुबह से लेकर दोपहर तक का समय सही माना जाता है. श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए बताया गया है।लेकिन दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। इसलिए कहते हैं कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। दिन का मध्य पितरों का समय होता है। दरअसल पितर मृत्युलोक और देवलोक के मध्य लोक में निवास करते हैं जो चंद्रमा के ऊपर बताया जाता है। दूसरी वजह यह है कि दोपहर से पहले तक सूर्य की रोशन पूर्व दिशा से आती है जो देवलोक की दिशा मानी गई है। दोपहर में सूर्य मध्य में होता है जिससे पितरों को सूर्य के माध्यम से उनका अंश प्राप्त हो जाता है। तीसरी मान्यता यह है कि, दोपहर से सूर्य अस्त की ओर बढ़ना आरंभ कर देता है और इसकी किरणें निस्तेज होकर पश्चिम की ओर हो जाती है। जिससे पितृगण अपने निमित्त दिए गए पिंड, पूजन और भोजन को ग्रहण कर लेते हैं।
क्यों लगाया जाता है खीर-पूरी का भोग?
शास्त्रों में पायस को प्रथम भोग बताया गया है और खीर पायस अन्न होती है. वहीं चावल एक ऐसा अनाज है, जो पुराना होने पर भी खराब नहीं होता। बल्कि पुराना होने के साथ और अच्छा हो जाता है. इसलिए पितरों को प्रथम भोग के तौर पर पायस अन्न का भोग लगाया जाता है। एक मान्यता यह भी है कि हमारे पितर हमसे काफी लंबे समय बाद मिलने आते हैं और हम भारतीयों में खीर पूरी का भाव हर किसी भी त्योहार में अवश्य ही लगाया जाता है इसीलिए पितरों को खीर पूरी कब हो अवश्य लगाया जाता है क्योंकि यह महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में पितरों के आगमन पर उनके आतिथ्य सत्कार के लिए खीर और पूड़ी बनाई जाती है।
हिंदू धर्म में श्राद्ध के दौरान पितरों को खीर का भोग लगाने का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि खीर का भोग लगाने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार को खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे बनाई जाती है श्राद्ध में खीर।
खीर बनाने के लिए आवश्यक सामग्री है यह।
-एक लीटर दूध-
-दो कटोरी मखाने
-चार चम्मच शक्कर
-दो चम्मच घी
-बादाम-
काजू की कतरन
-किशमिश
- पाव कटोरी बूरा (सूखा नारियल का)
- इलायची पाउडर
-आधा चम्मच केसर के लच्छे दूध में भीगे हुए।
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