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Home ›   Blogs Hindi ›   Mithun Sankranti 2022: This day is celebrated as Raja Sankranti in Odisha

Mithun Sankranti 2022: ओडिशा में रज संक्रांति के रूप में मनाया जाता है ये दिन

Myjyotish Expert Updated 16 Jun 2022 05:30 PM IST
ओडिशा में रज संक्रांति के रूप में मनाया जाता है ये दिन
ओडिशा में रज संक्रांति के रूप में मनाया जाता है ये दिन - फोटो : google
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ओडिशा में रज संक्रांति के रूप में मनाया जाता है ये दिन , त्योहार पर होती है सिलबट्टे की पूजा


ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस दिन सूर्य देव की पूजा का महात्म है। सूर्य देव प्रसन्न होते है तो विशेष फल मिलता है। सभी त्योहारों में ये विशेष त्योहार माना जाता हैं।
एक साल में 12 संक्रांति आता है। जिसमें एक मिथुन संक्रांति है। ज्योतिषाशास्त्रों के  अनुसार ये एक ऐसा ग्रह है जो कभी वर्क नहीं होता हैं बल्कि यह हमेशा मार्गी होता है।सूरज हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन करता है और इस परिवर्तन तिथि को मिथुन संक्रांति कहते है।
दूसरी ओर मिथुन संक्रांति के दिन सूरज बृषभ राशि से मिथुन राशि गोचर करता है। ज्येष्ठ महीने में सूरज मिथुन राशि में प्रवेश करता है। 

इस बार मिथुन संक्रांति 12 जून को पड़ा है। ओडिशा में ये उत्सव बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं।मिथुन संक्रांति को रज संक्रांति कहते हैं। रज संक्रांति के दिन धरती का रूप मानकर सिलबट्टे की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन वर्षा ऋतु प्रारंभ होती है। इस  त्योहार में कुआरी कन्न्याये और महिलाएं हिस्सा लेती है।इस दिन ये लोग धरती माता प्रार्थना करते है की अच्छी बारिश और अच्छी फसल हो। कन्न्याएं अच्छे वर के लिए प्रार्थना करती है। 

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 राजा परवा के रूप में मनाया जाता है रज संक्रांति
ओडिशा में इस दिन को त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मिथुन संक्रांति संक्रांति के चार दिन पहले से शुरू हो जाता है। कुछ लोग इसे रज संक्रांति के नाम से भी जानते है। रज संक्रांति को  ओडिशा में राजा परवा पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। इस त्योहार में माना जाता है की पहली बारिश की शुरआत होती है। ये त्योहार चार दिन तक चलता है। चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार में पहले दिन को पहिली राजा , दूसरे दिन को मिथुन राजा , और तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा और चौथे दिन को बासुमति स्नान कहा जाता है।

सिलबट्टे के पूजा के पीछे की मान्यता 
माना जाता है की जिस तरह महिलाओं में हर माह मासिक धर्म आता है , उसी तरह धरती माता इन दिनों में मासिक धर्म से गुजराती है। इस लिए तीन दिनों तक  सिलबट्टे का धरती का प्रति रूप मानकर इनका इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं। इस त्योहार में महिलाएं और कुंवारी कन्याएं भाग लेती है। कुंवारी कन्याएं इस दिन पूजा करके अपने लिए अच्छे वर की प्रार्थना करती है। 

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इस तरह मनाया जाता है त्योहार 
इस दिन महिलाएं सुबह उठकर घर की पूरी अच्छे से सफाई करके , स्नान करती है। इस दिन स्वच्छ कपड़े पहने। इस त्योहार में महिलाएं पहले दिन हल्दी लगाकर स्नान करती है और तीनों दिन व्रत रखती है। पहले दिन स्नान के बाद महिलाएं दो दिन स्नान नहीं करती है , सीधे चौथे दिन फिर से हल्दी लगाकर स्नान करना ऐसी परंपरा है। इसी दौरान पारंपरिक लोक गीत होता है और लोक नृत्य भी किया जाता है। इन सब परंपराओं के बीच में धरती की खुदाई नहीं किया जाता है। चौथे दिन महिलाएं सिलबट्टे को धरती मानकर दूध और शुद्ध जल से स्नान करवाती है। उसके बाद सिलबट्टे की फूल , चंदन और सिंदूर चढ़ाएं। अपनी क्षमता के अनुसार जरूरत मंदो को दान्य पुण्य करें।
 

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