महर्षि दधिचि ने धर्म की रक्षा के लिए किया था अपनी हड्डियों का दान और देवताओं को मिला विजय का आशीर्वाद
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के दौरान दधीचि जयंती का पर्व मनाया जाता है. भारतीय धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि को एक ऎसे महान ऋषि के रुप में स्थान प्राप्त है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देवताओं के मान समान की रक्षा की. महर्षि दधीचि जयंती देशभर मे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है. महर्षि दधीचि के त्याग की गाथा आज भी सभी के लिए प्रेरणा की स्त्रोत रही है. पौराणिक कथाओं मान्यता के अनुसार महर्षि दधीचि का स्थान एक महान दानी के रुप में भी स्थान पाता है.
भगवान शिव के परम भक्त
दधीचि को भगवान शिव के भक्त के रूप में भी जाना जाता है. भगवान शिव के शक्ति से विच्छेह होने पर, वह एक एकांत स्थान में रहने के लिए एक जंगल में चले गए. पहली बार भगवान शिव अपने भक्तों के लिए एक ऋषि के रूप में प्रकट हुए, जिसमें दधीचि और उनके शिष्य शामिल थे, जो शिव की पूजा करते थे. भगवान शिव से उन्हें अस्त्र के समान देह की प्राप्ति भी होती है जिसे वह देवताओं को समर्पित कर देते हैं.
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इंद्र और वृत्र - वज्रयुद्ध की कथा
देवों के राजा इंद्र को एक बार वृत्रासुर नामक असुर ने देवलोक से बाहर निकाल दिया था. असुर को एक वरदान प्राप्त था जिससे उसे किसी भी हथियार से नहीं मारा जा सकता था, वह अजेय हो गया था अपनी शक्ति का उसने गलत उपयोग किया और दानव, वृत्रा ने भी अपने उपयोग के लिए और अपनी दानव सेना के लिए दुनिया का सारा पानी चुरा लिया. उसने ऐसा इसलिए किया ताकि अन्य सभी जीवित प्राणी प्यास और भूख से मर जाएं स्वर्ग में अपने स्थान को चुनौती देने के लिए कोई मानव या ईश्वर जीवित न रहे वहां भी अपनअ धिकार स्थापित कर लिया.
इंद्र, जो अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की सभी आशा खो चुके थे, ब्रह्मा जी की सहायता लेने गए. ब्रह्मा जी ने उन्हें श्री विष्णु के पा भेजा ओर तब नउन्होंने इंद्र को बताया कि ऋषि दधीचि की हड्डियों से बना हथियार ही वृत्रा को हरा सकता है. इंद्र और अन्य देवता ऋषि के पास गए, और उनसे वृत्रा को हराने में उनकी सहायता मांगी. दधीचि ने देवों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया, लेकिन कहा कि उनकी इच्छा है कि उनके पास अपने जीवन को त्यागने से पहले सभी पवित्र नदियों की तीर्थ यात्रा पर जाने का समय हो. तब पवित्र नदियों के सभी जल को नैमिषारण्य में एक साथ लाया गया जिससे ऋषि को बिना समय गंवाए
अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर प्राप्त हुआ. तब दधीचि ने योग द्वारा अपना जीवन त्याग दिया था जिसके बाद देवों ने उनकी रीढ़ से वज्रयुध का निर्माण किया था, तब इस हथियार का इस्तेमाल असुर को हराने के लिए किया गया था, जिससे इंद्र देवलोक के राजा के रूप में अपना स्थान पुनः प्राप्त किया और एक बार सृष्टि में स्थिरता एवं शुभता का आगमन भी होता है.
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