चन्द्रमा ने एक श्राप के कारण की थी, इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना
भारत में भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंग देश ओर देश से बाहर स्थापित हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद ज्योतिर्लिंगों का अपना महत्व और मान्यता है. हर साल महाशिवरात्रि का पर्व देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं. शिवरात्रि के दिन बाबा भोलेनाथ की पूजा का बड़ा महत्व है.
मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इसी उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है और इस समय पर शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भिड़ बनी रहती है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
इस खास मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हर कोई करने की चाह रखता है. इन ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर अपनी स्थापना को लेकर बहुत विशेष रहा है.
सोमनाथ प्रथम ज्योतिर्लिंग है
देश के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ मंदिर को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित इस मंदिर में देश-विदेश से लोग दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
कहा जाता है कि आक्रमणकारियों और शासकों ने इसे कई बार नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे. गुजरात में सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित रही हैं आइये हम आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में बताते हैं.
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सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा ने ही सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी. यही कारण है कि इस शिवलिंग को सोमनाथ के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा जो बहुत अधिक प्रचलित रही है वह चंद्रमा से संबंधित करता है. राजा दक्ष ने अपनी 27 बेटियों की शादी चंद्रमा से की थी.
लेकिन अपनी सभी पत्नियों में चंद्रमा रोहिणी को सबसे ज्यादा प्यार करते थे. इससे दक्ष की अन्य पुत्रियां रोहिणी से ईर्ष्या करने लगीं वहीं जब दक्ष को इस बात का पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर चंद्रमा को श्राप दे दिया.
चंद्रमा की स्थापना की
दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया कि वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा. बाद में इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने ब्रह्मदेव के कहने पर प्रभास क्षेत्र में भगवान शिव की घोर तपस्या की. इस दौरान चंद्र देव ने शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा की. चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त किया और उन्हें अमरता का वरदान दिया.
इस श्राप और वरदान के कारण चंद्रमा 15 दिनों तक बढ़ता रहता है और 15 दिनों तक घटता रहता है. वहीं श्राप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव से अपने बनाए शिवलिंग में रहने की प्रार्थना की और तभी से इस शिवलिंग की पूजा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में की जाने लगी.
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