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जानिए मां दुर्गा क्यों करती हैं शेर की सवारी और क्या हैं इनके महत्वपूर्ण पहलू

My Jyotish Expert Updated 10 Oct 2021 02:40 PM IST
navratri 2021
navratri 2021 - फोटो : google
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नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर स्वरूप का अपना महत्व और अपनी कथा है। नवरात्र के दिनों मां दुर्गा से जुड़ी कथा और जानकारियों के बारे में काफी सुनने और देखने को मिलती हैं। आज इसी क्रम में हम आपको मां दुर्गा की सवारी सिंह के बारे में बताने जा रहे हैं। यूं तो मां दुर्गा के कई रूप हैं और उन स्वरूपों में मां के अलग-अलग वाहन भी है लेकिन सिंह उनका प्रमुख वाहन है। आखिर मां दुर्गा सिंह की सवारी क्यों करती हैं और इसके पीछे की कथा क्या है।


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मां ने जिद कर ली थी कि जब तक वह गोरी नहीं हो जाएंगी तब तक वह यहीं तपस्या करेंगी। देवी पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया. तब से मां पार्वती का वाहन शेर हो गया.

देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती बाघ पर। देवी दुर्गा के दो वाहन हैं। उन्हे कुछ मूर्तियों और चित्रों में शेर पर तो कुछ कुछ तस्वीरों में उन्हें बाघ पर विराजमान बताया गया है। महिषासुर वध का वधर करते समय वह सिंह पर सवार थीं। इसके अलावा अन्य दैत्यों का वध करते समय वे बाघ पर सवार थीं।
 
- पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें शेर पर सवार दिखाया गया है।


कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी कुष्मांडा शेर पर सवार है। माता चंद्रघंटा भी शेर पर सवार है। 
 
- जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है।
- माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है।


नवरात्रि पर माता दुर्गा की उपासना की जाती है। पुराणों में नवरात्रि की माता नौ दुर्गा के अलग अलग वाहनों का वर्णन मिलता है। जैसे शैलपुत्री माता वृषभ पर सवार है तो कालरात्रि माता गधे पर। इसी तरह प्रत्येक देवी का वाहन अलग अलग है, परंतु माता का मुख्य वाहन शेर और सिंह ही है। आओ जानते हैं इस संबंध में 2 खास बातें।

1. देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती शेर (बाघ) पर। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें सिंह पर सवार दिखाया गया है। कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी कुष्मांडा शेर (बाघ) पर सवार है। माता चंद्रघंटा भी शेर (बाघ) पर सवार है। जिनकी प्रतिपद और जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है। माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है।
 
2. एक कथा अनुसार शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की। तपस्या से देवी सांवली हो गई। भगवान शिव से विवाह के बाद एक दिन जब शिव पार्वती साथ बैठे थे तब भगवान शिव ने पार्वती से मजाक करते हुए काली कह दिया। देवी पार्वती को शिव की यह बात चुभ गई और कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा शेर देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा। लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप बैठ गया।


शेर सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठे और वह उन्हें अपना आहार बना ले। इस बीच कई साल बीत गए लेकिन शेर अपनी जगह डटा रहा। इस बीच देवी पार्वती की तपस्या पूरी होने पर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती गौरवर्ण यानी गोरी होने का वरदान दिया। इसके बाद देवी पार्वती ने गंगा स्नान किया और उनके शरीर से एक सांवली देवी प्रकट हुई जो कौशिकी कहलायी और गौरवर्ण हो जाने के कारण देवी पार्वती गौरी कहलाने लगी। देवी पार्वती ने उस शेर को अपना वाहन बना लिया जो उन्हें खाने के लिए बैठा था। इसका कारण यह था कि शेर ने देवी को खाने की प्रतीक्षा में उन पर नजर टिकाए रखकर वर्षो तक उनका ध्यान किया था। देवी ने इसे शेर की तपस्या मान लिया और अपनी सेवा में ले लिया। इसलिए देवी पार्वती के वाहन माने शेर/ सिंह माने जाते हैं।

दुर्गा की सिंह की सवारी को लेकर कई कथाएं आती हैं। इनमें सबसे ज्यादा प्रचलित कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की। तपस्या देवी का रंग सांवला हो गया था। एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठकर हंसी-मजाक कर रहे थे। तभी भगवान शिव ने माता पार्वती से मजाक में काली कह दिया। देवी पार्वती को शिवजी की यह बात चुभ गई और वह कैलाश छोड़कर फिर से तपस्या करने में लीन हो गईं। इस बीच एक भूखा सिंह देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप बैठा रहा। 


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