मंदिर के निकट ही एक धर्मशाला है जहा पास में ही माँ चामुंडा स्थित हैं। यह धर्मशाला श्मशान घाट के पास है जहां रोज एक चिता अवश्य ही जलाई जाती है। जिस दिन किसी की मृत्यु न भी हो उस दिन भी यहां लकड़ी की चिता बनाकर जलाई जाती है। लोगों का मानना है की यदि इस स्थान पर चिता न जलाई जाए तो कोई न कोई अनहोनी घटना हो जाती है। माँ चिंतपूर्णी को देवी छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार जिस भी स्थान पर माँ चिंतपूर्णी का निवास स्थान हो उस स्थान का चारों दिशाओं से संरक्षण होना अति आवश्यक है।
नवरात्रों में माता चिंतपुर्णी में कराएं दुर्गा सप्तशती का पाठ मां हरेंगी हर चिंता
देवी छिन्नमस्तिका के मंदिर के आस पास का स्थान बहुत ही सुन्दर और मन मोहक है। इस स्थान की सुंदरता नवरात्रि के अवसर पर और भी बढ़ जाती है जब यहां माँ के दर्शन पाने के लिए भक्तों का ताता लगा होता है। यह मंदिर बहुत ही अलौकिक और दर्शनीय केंद्र पर स्थित है जो की लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सदैव ही सफल रहता है। भक्तों को माँ के आशीर्वाद के साथ साथ इस स्थान की लोकप्रियता का भी अनुभव करने का मौका मिलता है।
चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारों ओर शिव मंदिर है, माँ के मंदिर से उनकी दूरी भी एक समान है। चिंतपूर्णी मंदिर के पूर्व में कालेश्वर महादेव, दक्षिण में शिवबाड़ी मंदिर उत्तर में मुचकुंद महादेव और पश्चिम में नरयाणा महादेव का मंदिर स्थित है। चिंतपूर्णी मां का दरबार दस महाविद्याओं में से एक है। जो सदैव अपने भक्तों के दुःख और चिंताओं को दूर करने के लिए खुला है।
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