Maa Bhadrakali temple : भक्त के श्राप से पत्थर की बन गई थी पूरी बारात, ये है 500 साल पुराने मां भद्रकाली मंदिर की कथा
हाथरस के सादाबाद क्षेत्र के सहपऊ कस्बे में प्राचीन मां भद्रकाली का मंदिर अनेको चमत्कारों का साक्षी है. लोगों के अनुसार मंदिर का इतिहास महाभारत में भी मिलता है. उत्तर प्रदेश के हाथरस के सादाबाद क्षेत्र के सहपऊ कस्बे में मां भद्रकाली मंदिर चमत्कारों का साक्षी माना जाता है.
लोगों के अनुसार मंदिर का इतिहास महाभारत में भी मिलता है. श्रीमद्भागवत में मां भद्रकाली का दो बार उल्लेख आया है. सहपऊ कस्बे से लगभग 18 किमी दूर जलेसर सिटी को महाभारत कालीन जरासंध की राजधानी कहा जाता है. मां भद्रकाली मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है.
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मान्यता है कि मथुरा और जलेसर के मध्य सहपऊ कस्बे में भगवान श्रीकृष्ण ने इस मंदिर का निर्माण कराया और योगमाया को प्रकट कर उनकी पूजा-अर्चना की थी. हालांकि, बाद में यह प्राचीन मां भद्रकाली का मंदिर मुगल काल के दौरान औरंगजेब का कोप भाजन बना.औरंगजेब इस मंदिर के मूर्तियों को तोड़ कर अपने साथ ले जाते हुए रास्ते में फेंकता गया.
जो बाद में स्थान-स्थान पर खुदाई करते समय पाषाण खंडों के रूप में निकलते गए, जिस गांव में मां के मंदिर के पत्थर निकले वहां के ग्रामीणों ने उस पत्थर को एक स्थान पर रखकर मंदिर का निर्माण करवा दिया.
साल के दोनों नवरात्रि में लगता है मेला
प्राचीन मां भद्रकाली मंदिर के आसपास के क्षेत्रों में दोनों ही नवरात्रि में मेला लगा रहता है. नवरात्र में इस मंदिर में भंडारा करने वालों की भीड़ लगी रहती है.हाथरस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के अनेक क्षेत्रों से माता के भक्त दर्शन और मेले को देखने के लिए लोग आते हैं.
भक्त के श्राप से पूरी बारात पत्थर बन गई!
यह भी किवदंती है कि एक पंडित की लड़की, जो कि मातारानी की भक्त थी. वह मंदिर में पूजा करने आई थी, उस पर बारात में शामिल कुछ लोगों ने व्यंग कर दिया था, जिसके बाद उसके श्राप से पूरी बारात पत्थरों में तब्दील हो गई थी.
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उस बारात के अवशेष आज भी मंदिर में गवाही के रूप में मौजूद हैं. कुछ लोग बताते हैं कि महाभारतकालीन सहपऊ कस्बे का नाम पांचों पांडवों में सहदेव के नाम पर सहपऊ पड़ा. मां भद्रकाली का यह मंदिर करीब 500 साल पुराना बताया जाता है.
दर्शन के लिए आते थे असम के राजा
बताते हैं कि मां का स्थान पहले एक पीपल के पेड़ के नीचे था. भक्तों पर मां की कृपा होती रही तो मां को उन्होंने विशाल भवन में विराजमान कर दिया. मान्यता है कि मां भद्रकाली के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से मुराद लेकर आता है,
मां उसकी मुराद अवश्य पूरी करती है. यही कारण है कि देवी के दरबार में देश के कोने-कोने से भक्त आते रहते हैं. पुराने समय में असम के राजा का साल के दोनों नवरात्रि में आना कई बुजुर्गों को याद है
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