शिव को संसार की उत्पति से लेकर अंत का स्त्रोता माना गया है। कहा जाता है की उन्हीं से संसार की शुरुआत है तो वहीं उन्हीं से संसार का अंत भी है। शिव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समाये हुए हैं। अर्थात जब संसार में कुछ नहीं था तब भी शिव थे और जब कुछ नही होगा तब ही शिव का आस्तित्व समस्त संसार में बना रहेगा। शिव को महाकाल कहा गया है जिसका अर्थ है समय। शिव अपने इसी रूप में पूर्ण ब्रह्मांड का भरण-पोषण करते हैं। उन्होंने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित करके रखा हुआ है।
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शिव बहुत भोले हैं उन्हें देवों के देव के रूप में ही महादेव कहा जाता है। उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही सरल होता है। वह कम परिश्रम परन्तु पूर्ण श्रद्धा से की गई आराधना से प्रसन्न होते हैं और भक्तों को पूर्ण रूप से सुखी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का बहुत महत्व है। श्रद्धालुओं द्वारा शिव का जलाभिषेक किया जाता है। उन्हें बेलपत्र, धतूरा अर्पण किया जाता है । धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से उतरने के लिए घोर तपस्या की थी। जिसे शिव जी ने अपनी जटा में धारण किया था।
धरती पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक एक ही व्यक्ति का मानव शरीर है जिसके माथे पर ज्योति प्रदान की गयी है। इस स्वरुप में जीवन यापन करके ईश्वर ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो प्रत्येक रूप में मानव जीवन के लिए कल्याणकारी प्रमाणित हुआ है। परमात्मा शिव के इसी स्वरुप द्वारा ही मानव शरीर को रूद्र से शिव बनने की प्रेरणा मिलती है। शिव को संसार का सत्य, संसार की शक्ति व उन्हीं को इसकी उत्पत्ति का मूल माना गया है।
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