बहुत कम लोग जानते हैं की शनि को जितना बुरा माना जाता है वह उतना बुरा ग्रह नहीं है। वह मारक व अशुभ भी नहीं बल्कि वह तो एक मात्र ऐसा ग्रह है जिसकी कृपा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह प्रकृति में संतुलन स्थापित करके प्राणियों में न्याय करते हैं। शनि केवल उन्हीं को दण्डित करते हैं जो व्यक्ति विषमता और अस्वाभाविकता को आश्रय प्रदान करें। शनिदेव का शनिवार के दिन सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। इससे शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं और सदैव अपने भक्तों पर सुख बरसाते रहते हैं।
कथन अनुसार शनि सूर्य देव की पत्नी छाया के पुत्र थे। छाया भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं व सदैव उनकी भक्ति में लीन रहती थी। जब शनि देव उनके गर्भ में थे तो वह शिव की भक्ति में इतनी लीन थी की उन्हें खाने पीने का भी सुध नहीं रहता था जिस कारण शनिदेव का रंग श्याम हो गया। पुत्र का यह रंग देख सूर्य ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया और देवी छाया को अपमानित करने लगे। तभी से शनि देव अपने पिता सूर्य के प्रति शत्रु का भाव रखने लगे। उन्होंने अपने मन में ठान लिया था की उन्हें अपनी माँ के अपमान का बदला लेना ही है।
उन्होंने भगवान शिव को अपनी घोर तपस्या से प्रसन्न किया तथा उनसे वरदान माँगा। शनिदेव ने कहा की वह अपने पिता से भी शक्तिशाली होना चाहते है। शिव जी ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया की नवग्रहों में शनि का सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा, न केवल मनुष्य परन्तु देवता भी उनसे भयभीत होंगे। तभी से सभी शनिदेव को प्रसन्न करने लगे तथा कोई भी उनसे बैर नहीं करता है।