जानिए कब रखा जाएगा वरलक्ष्मी व्रत, इसका महत्व, कथा और अन्य जानकारी
इस साल वरलक्ष्मी का व्रत 12 अगस्त दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। सावन मास का आखरी शुक्रवार बहुत महत्व माना जाता है। सावन का आखरी शुक्रवार मां वरलक्ष्मी को समर्पित होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां वर लक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर से हुई थी। शास्त्रों में माता को बहुत आकर्षित बताया गया है। मां के स्वरूप को व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मां निर्मल जल की तरह दूधिया रंग वाली हैं साथ ही मां सोलह श्रंगार और आभूषणों से सुसज्जित हैं।
वरलक्ष्मी की पूजा व्रत करने से मां अष्ट लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। जो भी व्यक्ति मां की व्रत और पूजा करता है उसके जीवन में दरिद्रता का निवास नहीं होता है। इसके साथ ही नियमित पूजा करने से पीढ़ी दर पीढ़ी लंबे समय तक जीवन सुखमय बीतता है। आइए जानते है की वरलक्ष्मी व्रत से जुड़ी जरूरी बातें :–
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वरलक्ष्मी व्रत के दिन सावन पूर्णिमा का संयोग
सावन के महीने में किसी भी त्योहार का महत्व बड़ जाता है। जैसे इस बार वरलक्ष्मी का व्रत सावन के महीने में पड़ा है तो इसका महत्व और भी बड़ जाता है क्योंकि वरलक्ष्मी व्रत के साथ सावन मास की पूर्णिमा का भी संयोग भी बन रहा है। आइए जानते है वर लक्ष्मी के कुछ शुभ मुहूर्त ;
इस दिन सुबह 11: 34 मिनट तक सौभाग्य योग है। उसके बाद शोभन योग शुरू हो रहा है। धार्मिक रूप से इन दोनों ही योग को शुभ माना जा रहा है। पूजा का शुभ समय सुबह 6ः14 से 8ः32 मिनट तक है और दोपहर में 1ः07 मिनट से 3ः26 मिनट तक है। शाम में 7ः12 मिनट से रात के 8ः40 मिनट तक रहेगा।
व्रत का महत्व
वरलक्ष्मी व्रत की महत्व दक्षिण भारत में विशेष रूप से है। वरलक्ष्मी के व्रत को कोई भी रख सकता है। चाहे वो सुहागिन महिलाएं हो या शादीशुदा पुरुष दोनों ही व्रत रख सकते हैं। मान्यता है की इस व्रत को जो भी व्यक्ति सच्चे मन से करता है उसके परिवार में सौभाग्य, सुख शांति और संतान सब कुछ प्राप्त होता है। कभी भी परिवार में दरिद्रता निवास नहीं करता है। इस व्रत को करने से मिलने वाला पुण्य लंबे समय तक फलता फूलता है।
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व्रत के दौरान ऐसे करें पूजा
शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहने उसके बाद वरलक्ष्मी व्रत का संकल्प लें कर पूजा शुरू करें। पूजा के लिए एक चौकी लेकर उस पर स्वच्छ लाल वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी और गणेश जी को प्रतिमा रखें। इसके बाद भगवान को कुमकुम, चंदन, इत्र, धूप, वस्त्र, कलावा, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद गणपति के सामने घी का दीपक जलाएं और माता लक्ष्मी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर गणपति और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप कर के पूजा करें। माता लक्ष्मी का मंत्र जाप करने से पहले एक बात का ध्यान दे की मां के मंत्रों का जाप कमलगट्टे या स्फटिक की माला से जाप करें। जाप करने के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा पढ़ें। इसके बाद आरती कर के घर के हर सदस्य को दे कर अंत में प्रसाद सबको बांट दे।
वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मगध देश में कुंडी नामक एक नगर था। इस नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी।चारुमती मां लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी और हर शुक्रवार को माता के लिए व्रत रखती थी।एक दिन माता लक्ष्मी उसके सपने में आयीं और उससे कहा कि वो सावन के महीने में पूर्णिमा से पहले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी का व्रत रखे। चारुमती ने मां का आदेश मानकर वो व्रत किया।जैसे ही व्रत का समापन हुआ चारुमती की किस्मत ही पलट गई। उसके शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए और उसका घर धन धान्य से भर गया। चारुमती को देखकर क्षेत्र की बाकी महिलाएं भी इस व्रत को रखने लगीं। धीरे-धीरे इस व्रत का चलन दक्षिण भारत में बढ़ गया और इसे धन-धान्य प्रदान करने वाला व्रत माना जाने लगा।
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