Kannauj Dussehra : कन्नौज में दशहरा के 5 दिन बाद होता है रावण दहन, 200 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा
लंकापति रावण के मृत्यु को लेकर कुछ कथाएं मिलती है। कुछ लोग का कहना है की रावण दशहरा के दिन नहीं मरा था बल्कि दशहरा के पांचवे दिन शरद पूर्णिमा वाले दिन उसकी मृत्यु हुई थी। कई जगहों पर दशहरा के दिन पुरानी प्रथाएं भी निभाई जाती है।
जैसे कन्नौज में दशहरा वाले दिन रावण को नहीं जलाया जाता हैं बल्कि दशहरा के 5 वें दिन इस विधि को की जाती है। वहा की यहीं परंपरा है और ये परंपरा 200 सालों से चली आ रही है। यहां के लोगों का मानना है की रावण को दशहरा वाले दिन दहन नहीं किया गया था बल्कि जिस डेट में दशहरा है ठीक उसके पांचवे दिन रावण दहन की परंपरा है।
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यहां की पुराने समय से रामलीला होते चले आ रहा है और यहां की रामलीला इतनी रोचक होती है कि इसका इंतजार पूरे क्षेत्र के लोगों को साल भर से होता है। यहां के लोग रामलीला की तैयारी कई महीनों से करना शुरू कर देते है। पौराणिक कथाओं में मिलता है की जब रावण और श्री राम में युद्ध चल रहा था तब विभीषण के कहने पर भगवान ने रावण के नाभि पर तीर चलाई।
जिसकी वजह से रावण के नाभि में जो अमृत था वो बाहर आ गया। जिसकी वजह से रावण अचेत अवस्था में पूरे 5 दिन धरती पर पड़ा रहा। उसने पांच दिनों तक शरीर नहीं त्यागा था। ऐसे बताया जाता है की जब रावण अचेत अवस्था में था तब अयोध्या के राजा राम ने अपने अनुज लक्ष्मण से कहा कि रावण परम ज्ञानी है, लक्ष्मण तुम जाओ उससे ज्ञान ले लो।
200 सालों पुरानी अनोखी प्रथा
जब रावण अचेत अवस्था था तब राम ने लक्ष्मण से कहा की अनुज रावण परम ज्ञानी है, उसके पास जाकर कुछ ज्ञान ले लो। ऐसी मान्यता है की उस समय रावण ने जो लक्ष्मण को ज्ञान दिया था, उसमे पूरे 5 दिन का समय लग गया था। लक्ष्मण को ज्ञान देने के बाद शरद पूणिमा के दिन रावण ने भगवान श्री राम का नाम लेते हुए अपने प्राण त्याग दिए। इसी वजह से कन्नौज जिले में रावण का वध और दहन की जो प्रथा 200 पुरानी है वो आज भी निभाई जाती है।
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ये परंपरा सालों से चली आ रही है, जिसके चलते दशहरे के दिन रावण दहन नहीं होता है बल्कि ठीक दशहरे के 5 वें दिन होता है। कन्नौज जिले में दो जगहों पर रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता है। और आपको बता दे की दोनों ही जगह दशहरा के पांचवे दिन शरद पूर्णिमा के दिन रावण दहन होता है।
साल भर होता है रामलीला का इंतजार
यहां की रामलीला देखने दूर दूर से लोग आते है। क्योंकि ये परंपरा आज की नहीं है बल्कि पूरे 200 साल पुराना है। यहां की रामलीला देख कर राम भक्त मनमुक्द हो जाते है। भगवान के जयकारों के साथ रावण दहन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यहां के मूल निवासी लोग पूरे साल भर इस पर्व का इंतजार करते है।
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