कामाख्या मंदिर का अंबुवाची मेला तंत्र क्रियाओं का गढ़, जहां पूरी होती है सिद्धि की कामना
आसाम के गुवाहाटी में स्थित देवी के सबसे प्रमुख शक्ति पीठ कामाख्या मंदिर एक बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है. यह शक्ति पीठ तंत्र कार्यों हेतु अत्यंत विशेष स्थान रहा है. संपूर्ण देश भर से भक्त इस स्थान पर आकर माता कामाख्या का दर्शन करते हैं. कामाख्या मंदिर तंत्र मार्ग का केंद्र है और अम्बुबाची मेले का स्थल है, यह मेला जो एक वार्षिक उत्सव है जो देवी के मासिक धर्म के दौरान मनाया जाता है. कामाख्या मंदिर में लगने वाला अंबुबाची मेला चार दिवसीय पर्व होता है. अंबुबाची मेला भारत के सबसे बड़े प्रसिद्ध मेलों में से एक है. यह कामाख्या मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और हर साल जून के महीने में मनाया जाता है.
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अंबुवाची मेला कब मनया जाता है ?
अंबुबाची मेला हर साल 21 जून से 25 जून के बीच मनाया जाता है.कामाख्या मंदिर मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, देवी की पूजा योनि स्वरुप रूप में की जाती है जिसके ऊपर एक प्राकृतिक झरना बहता है. अंबुबाची का अर्थ है पानी से बोली जाने वाली और इसका अर्थ यह भी है कि इस महीने के दौरान होने वाली बारिश पृथ्वी को उपजाऊ बनाती है और भूमि प्रजनन अर्थात फसल एवं अन्य पदार्थों को देने के लिए तैयार होती है. मान्यता यह है कि कामाख्या मातृ पंथ, शक्ति का प्रतीक है. अंबुबाची की अवधि के दौरान हिंदू महीने आषाढ़ माह के सातवें से दसवें दिन तक रहता है.
इस समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. बारहवें दिन, विशेष रूप से मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और उस दिन मंदिर परिसर में एक बड़ा मेला लगता है. कामाख्या मंदिर, ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलाचल पहाड़ी के ऊपर स्थित है. कामाख्या 51 शक्ति पीठों में से एक पवित्र स्थल है जिनमें से प्रत्येक भगवान शिव के साथी सती के शरीर के अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. किंवदंतियों का कहना है कि मंदिर का निर्माण राक्षस राजा नरकासुर ने किया था.
कामाख्या मंदिर मासिक धर्म से जुड़ी मान्यता
अंबुबाची मेला गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में आयोजित होने वाला मेला है. यह एक हिंदू धार्मिक त्योहार है और यह ऋतु का वह समय है जब कामाख्या के मंदिर में निवास करने वाली प्रकृति माता या देवी का मासिक धर्म होता है. कामाख्या मंदिर शक्तिपीठों में से एक है और ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर शक्ति के जननांग गिरे थे. इस प्रकार, हर साल अंबुबाची, या देवी के मासिक धर्म के समय, बड़ी संख्या में भक्त यहां धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए इकट्ठा होते हैं. कामाख्या मंदिर के पास जून के महीने में 4 दिनों तक मेला लगता है. इस मेले का दूसरा नाम अमेती या तांत्रिक उत्सव है, जिसके दौरान कई तांत्रिक तपस्वी मेले में शामिल होने के लिए देश भर से यहां आते हैं. साधु संन्यासी यहां आकर देवी पूजन करते हैं. इस त्योहार के दौरान विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठानों को मनाया जाता है.
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कामाख्या पौराणिक महत्व
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि देवी शक्ति ने जब योग अग्नि से स्वयं को भस्म किया शिव अत्यंत क्रोधित हो गए, और सती का जलता शवअपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगते हैं, उसे रोकने के लिए, विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा, जिसने सती के शरीर को टुकड़ों में काट दिया, प्रत्येक भाग अलग-अलग दिशा में गिर रहा था. ऐसा कहा जाता है कि जहां जो भाग गिरा वह उस नाम से प्रसिद्ध हुआ. कामाख्या में देवी की योनी का भाग गिरा है इसकारण से इस स्थान को कामाख्या का नाम प्राप्त हुआ.
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