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Kalashtami vrat : शिव का रौद्र रूप है बाबा कालभैरो , जानें कैसे बने कोतवाल

MyJyotish Expert Updated 18 Jun 2022 12:36 PM IST
 शिव का रौद्र रूप है बाबा कालभैरो , जानें कैसे बने कोतवाल
 शिव का रौद्र रूप है बाबा कालभैरो , जानें कैसे बने कोतवाल - फोटो : google
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 शिव का रौद्र रूप है बाबा कालभैरो , जानें कैसे बने कोतवाल


काशी में शिव ज्योतिर्लिंग आदिकाल से है। बारहों ज्योतिर्लिंग में से काशी  विश्वनाथ  ज्योतिर्लिंग सबसे प्रमुख है। इस स्थान पर भगवान शिव के साथ साथ माता पार्वती की भी मूर्ति विराजमान है। सारे भक्त बहुत श्रद्धा भाव से यहां दर्शन करने आते है। मान्यता है की आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इन सबका उल्लेख महाभारत , और उपनिषद् में किया गया है। देवताओं में कालभैरो का बहुत ही मतत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा गया। इनकी पूजा करने से सारे रोगों से मुक्ति मिलती है। इनसे यमराज भी पीछे हो जाते है।

कालाष्टमी हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।इस बार कालाष्ठमी 20 जून दिन सोमवार को पड़ा है। अष्टमी तिथि 20 जून रात 09:01 मिनट पर शुरू होगा। 21 जून दिन मंगलवार को रात 8:30 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि के अनुसार 21 जून कलाअष्टमी मनाया जाएगा। इनकी पूजा करने से व्यक्ति काल को भी मात दे देता है।

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ये है पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु में श्रेष्ठता को कर विवाद हुआ। ब्रह्मा जी ने शिव जी से कुछ झूठ बोला जिससे शिव जी को गुस्सा आ गया। शिव जी के क्रोध से ही कालभैरो का जन्म हुआ। जिन्होंने ब्रह्मा जी की सिर काट दिया। कालभैरो पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। वह तीनो लोकों में मुक्ति पाने के लिए भ्रमड़ करने लगे।उन्हें कोई न मिला तो वो अंत में शिव जी के पास गए। शिव जी ने उन्हें काशी जाने को कहा। काशी मुक्ति का साधन है।कालभैरों के रूप में धरती  पर प्रकट हुए और मां गंगा में स्नान किया। उसके बाद शिव नगरी में कोतवाल बन के रहने लगे। इन्हें शिव जी का पांचवा स्वरूप माना गया है।पौराणिक कथाओं में ये भी मिलता है की जब कोतवाल ने ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया तब से उनके दोनों हाथ चिपक गए।काल भैरों ने काफी कोशिश की पर हाथ नहीं छूटा।

ब्रह्मा जी का लगा पाप 

कालभैरों को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। जिसका वो प्रायश्चित करना चाहते थे।जिसके लिए वह तीनो लोकों में घूमे। तब कालभैरो को बताया गया की वो काशी जाए तो उनको इस ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिल सकती है। उन्होंने ने काशी के लिए आगमन किया। वहा पहुंचते ही कोतवाल के हाथ से ब्रह्मा जी का सिर अपने आप छूट गया।

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ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के बाद काशी में बसे 

काशी में ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिलने के वजह से कालभैरों ने यही निवास का निर्णय बनाया। इन्होंने शिव जी कठिन तपस्या की और उनका आशीर्वाद लिया की आज से तुम्हें काशी का कोतवाल कहा जायेगा। आज काशी शिव की नगरी है और वहा के राजा विश्वनाथ को माना जाता है।

काशी के कोतवाल के मर्जी के बिना कुछ नहीं होता 

बड़ा व्यक्ति हो या छोटा सब काशी के कोतवाल के सामने अपना हजारी लगाते है की हम आपके दर्शन को आए है। यहां कोई भी व्यक्ति चोरी नहीं कर सकता है। यहां के जज भी यही है। यही न्याय व्यवस्था भी देखते है। ये जो चाहते है वही यहां होता है। विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन के पहले बाबा कालभैरों के दर्शन करते है। ऐसा नहीं करेंगे तो विश्वनाथ दर्शन सार्थक नहीं होगा।
 

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