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कालभैरव को दंडपाणि (अर्थात जो पापियों को दंड देता हो) भी कहा जाता है कालभैरव की आराधना के लिए रात्रि का समय बहुत शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार शिव ने अपने भैरव स्वरुप में अंधकार समान पापियों का नाश किया था तथा सर्वोपरि सुखद वातावरण का संचार किया था। नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव के साथ -साथ माँ दुर्गा की आराधना का भी विधान है। इनके आशीर्वाद से भक्तों के सभी दुःख - दर्द दूर हो जातें है। माँ काली शक्ति स्वरुप का रौद्र रूप है , जिनकी आराधना कालाष्टमी के दिन करने से देवी अतिप्रसन्न होती है तथा भक्तों की व्यथा का अंत करती है। इस दिन व्रत धारण करने वाले लोगों को मंत्रों का जाप करना चाहिए। बिना कोई अन्न ग्रहण किए कालाष्टमी के दिन केवल फलहार ही लेना चाहिए।
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कालभैरव की आरधना से जीवन में चल रही आर्थिक समस्याओं का अंत होता है। कुत्ता कालभैरव की सवारी के रूप में जाना जाता है , इसलिए कालाष्टमी के दिन उसे भोजन अवश्य प्रदान करना चाहिए। ऐसा करने से कालभैरव बहुत प्रसन्न होते है। इस दिन भैरव नाथ की व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे नकारात्मक शक्तियों का वास समाप्त होता है एवं जीवन में कुशलता आती है। कालभैरव जितने ही विनाशकारी है उतने ही कल्याणकारी भी , भक्तों को सदैव उनकी पूजा - अर्चनाकर उन्हें खुश रखना चाहिए। इससे दरिद्रता का अंत होता है एवं घर - परिवार में किसी भी चीज़ की कमी नहीं होती है।
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