ज्येष्ठा पूर्णिमा पर हरिद्वार में कराएं लक्ष्मी नारायण यज्ञ, होगी सुख-संपत्ति, धन, वैभव और समृद्धि की प्राप्ति - 24 जून 2021
कबीर जी ने अपनी वाणी से ही नहीं बल्कि स्वयं खुद से भी लोगों के जीवन को सुधारने और लोगों के बीच में प्रेम, सद्भाव और एकता कायम करने का प्रयास किया। उनके नाम से ही कबीर पंथ संप्रदाय की स्थापना की गई थी। धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह " बीजक " नाम के ग्रंथ में किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं- साखी, सबद (पद), रमैनी।
कबीर जी ने लोगों के मन में बने स्वर्ग और नर्क को व्याप्त भ्रांतियों को तोड़ने के लिए एक बड़ी मिसाल पेश की। माना जाता है कि कबीर जी अपना पूरा जीवन काशी में बिताने के बाद अपने अंतिम समय में एक ऐसे स्थान पर गए जहां पर लोगों का मानना था कि यह पर मरने वाला व्यक्ति नरक में जाता है। यहीं भ्रम को दूर करने के लिए कबीर जी ने अपना अंतिम समय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास मगहर में अपनी अंतिम सांस ली। सन् 1518 में कबीर का निधन मगहर में हुआ था।
क्यों हो रही हैं आपकी शादी में देरी ? जानें हमारे एक्सपर्ट एस्ट्रोलॉजर्स से
कबीरदास जी का जब यूपी के मगहर में देहावसान हो गया तो उनके हिंदू और मुस्लिम भक्तों में उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। कहते है कि उस समय जब लोगों ने जब उनके मृत शरीर से चादर हटाई गई तो वहां पर उनकी मृत शरीर की जगह फूल मिलें जिसके बाद हिंदू और मुस्लिम लोगों ने अपनी परंपरा के मुताबिक आधे-आधे फूल लेकर कबीर जी का अंतिम संस्कार किया। आज भी कबीर जी को बहुत पूजा और माना जाता है। उनके कहें हुए हर एक दोहे आज भी लोग अपने जीवन में अपनाते हैं।
यह भी पढ़े:
भौम प्रदोष व्रत कब है? इस दिन बन रहा है ये ख़ास संयोग, जानें पूजा विधि और महत्व
जानें घड़ी को लगाने की सही दिशा और रंग
जानें किन रत्नों को धारण करने से पैसों की तंगी दूर होती है और धन-समृद्धि में दिन-रात बरकत