इस ज्योतिर्लिंग की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है की यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं। यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। इस मंदिर का निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण सन 1755 से शुरू हो कर 31 साल के लम्बे समय के बाद 1786 में पूरा हुआ था। इस मंदिर को बनाने में करीब 16 लाख रुपयों की लागत लगी थी। प्राचीन काल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गौहत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्नकर माँ गंगा को वहाँ अवतरित करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। यहां वर्षभर भक्तों का मेला सा लगा रहता है। खासकर सावन के पहले सोमवार के दिन भक्तगण यहां दूर दूर से महादेव के दर्शन करने आते हैं। महादेव अपने भक्तों से सरलता से प्रसन्न हो जातें है ऐसे में उनकी कृपा प्राप्ति के लिए भक्त अनेकों प्रकार के पूजा अर्चना से महाकाल को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इस मंदिर के आस पास गाय को हरा घास खिलाने का बहुत अधिक प्रचलन है। इस मंदिर की नक्काशी बहुत ही सुन्दर व आकर्षक है।
इस क्षेत्र में आहिल्या नाम की एक नदी है जो गोदावरी नदी के साथ जाकर मिल जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस संगम स्थल पर नदी में स्नान करके दंपति संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। इस स्थान पर महादेव के त्रिनेत्र रूप में विराजमान होने के कारण उन्हें त्रयम्बक कहा जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर में महादेव का अभिषेक व महाभिषेक करने से महादेव की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। भगवान शिव भक्तों के सभी कष्टों को दूरकर उन्हें आजीवन सुख -समृद्ध व शांति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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