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Holashtak 2023 : होलाष्टक के बारे में प्रचलित कथाएं क्या हैं? मान्यताओं और परंपराओं को जानें

Myjyotish Expert Updated 17 Feb 2023 07:31 PM IST
Holashtak 2023 : होलाष्टक के बारे में प्रचलित कथाएं क्या हैं? मान्यताओं और परंपराओं को जानें
Holashtak 2023 : होलाष्टक के बारे में प्रचलित कथाएं क्या हैं? मान्यताओं और परंपराओं को जानें - फोटो : google
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होलाष्टक के बारे में प्रचलित कथाएं क्या हैं? मान्यताओं और परंपराओं को जानें

इस वर्ष होलाष्टक 27 फरवरी 2023, सोमवार से प्रारंभ होकर 07 मार्च 2023, मंगलवार को समाप्त होगा. होलष्टक का समय शुभ कार्यों की रोक का समय होता है. इस समय के दौरान कई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. लोक मान्यताओं में प्रचलित कई कथाएं इन आठ दिनों से संबंधित रही हैं.

इन कथाओं में भी इस समय पर किए जाने वाले मांगलिक कार्यों को करना अनुकूल नहीं माना जाता है. आइए जानते हैं होलाष्टक से जुड़ी प्रचलित कथाओं और परंपराओं और मान्यताओं के बारे में-

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होलाष्टक की कथा और महत्व 

होलाष्टक से जुड़ी एक कथा इस प्रकार है, होलिका-प्रह्लाद की कथा पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान श्री हरि विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए आठ दिनों तक घोर यातनाएं दी थीं. आठवें दिन होलिका, जो हिरण्यकश्यप की बहन थी, भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई और जल गई लेकिन भक्त प्रह्लाद बच गया. आठ दिनों की यातना के कारण इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है.
 
शिव-कामदेव कथा भी इसी से जुड़ी एक अन्य मान्यता पर आधारित है. हिमालय की पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए और दूसरी ओर देवताओं को पता था कि ब्रह्मा के वरदान के कारण केवल शिव का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है, लेकिन शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे. तब सभी देवताओं के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने का जोखिम उठाया. उसने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई. भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया. कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया.

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आठवें दिन तक कामदेव हर तरह से भगवान शिव की तपस्या भंग करने में लगे रहे. अंत में शिव ने क्रोधित होकर फाल्गुन की अष्टमी को ही कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया.बाद में देवी-देवताओं ने उन्हें तपस्या भंग करने का कारण बताया, तब शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की पूजा सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसलिए अनादि काल से ही होली की अग्नि में कामवासना को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता रहा है.

श्रीकृष्ण और गोपियां से संबंधित कथा भी यहां विशेष स्थान रखती है. कहा जाता है कि होली एक दिन का नहीं बल्कि आठ दिनों का त्योहार है. भगवान कृष्ण आठ दिनों तक गोपियों के साथ होली खेलते रहे और धुलेंडी यानी होली के दिन उन्होंने रंगीन कपड़े अग्नि को सौंप दिए, तभी से यह उत्सव आठ दिनों तक मनाया जाने लगा.
 
 

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