Guru Nanak Jayanti 2022 : गुरु नानक जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें
गुरु नानक का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनका जन्म 30 नवंबर 1469 को पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नाम गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक जयंती हर जगह मनाया जाता है।
गुरुनानक के पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था। और इनकी माता का नाम तृप्ती देवी था। कहा जाता है कि बचपन से ही गुरु नानक का आध्यात्मिकता की तरफ काफी रुझान था। गुरुनानक सिखों के प्रथम गुरु गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे। इस साल गुरुनाना जयंती 8 नवंबर 2022 दिन मंगावर को पड़ रहा है। इस दिन हर गुरुद्वारे में भरी संख्या में भक्तों की भीड़ होती है।
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इस दिन हर गुरुद्वारे को बहुत सुंदर ढंग से सजाया जाता है। सिख धर्म में गुरुनानक जयंती बहुत खास है। गुरु नानक जयंती उत्सव पूरनमाशी दिवस या पूर्णिमा दिवस से दो दिन पहले शुरू हो जाता है। इस दिन भजन , कीर्तन और अनुष्ठान जैसे पाठ किए जाते है। आइए गुरुनानक जयंती के उपलक्ष्य में इनसे जुड़ी कुछ बातों को जानते है।
गुरुनानक देव अहम बातें
बालक नानक का जन्म 1469 में लाहौर से 64 किलोमीटर दूर हुआ था। गुरु नानक देव बचपन से ही सब लोगों की अपेक्षा उनका स्वभाव कुछ अलग ही दिखाता था। ऐसा माना जाता है कि ईश्वर ने नानक को धरती पर कुछ अलग ही बना के भेजा था।
इतिहास में मिलता है की गुरुनानक बचपन से ही अध्यात्मिकता से जुड़े हुए है। ईश्वर की तलाश में उन्होंने 8 साल की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ दिया था। कुछ विद्वानों का तो ये भी मानना है की गुरुनानक का ईश्वर से साक्षात्कार होता था।
गुरुनानक अपने जीवन में कभी भी आडंबरों को नहीं माना। गुरुनानक ने अंधविश्वासों की ओर जा रहे लोगों और आडंबरों का विरोध भी किया था। उनका मानना था की साधु और मौलवी ईश्वर के आगे कुछ भी नहीं है। वो बाहरी दुनिया पर बिलकुल भी यकीन नहीं करते थे।
गुरुनाक का मानना था की ईश्वर प्रकृति में निवास करता है। बस हमें उसे खोजना है। गुरुनानक कहते थे की अगर इंसान चाहे तो ईश्वर को चिंतन के माध्यम से पा सकता है, तो इंसान को किसी आडंबरो के रास्ते नहीं बल्कि आध्यात्मिकता की ओर बढ़ना चाहिए।
गुरुनानक के माता – पिता ने उनका विवाह सुलखनी नमक लड़की से किया था। उनकी शादी 1496 में हुई थी।उनका एक परिवार भी था। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें।
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गुरुनानक की आध्यात्मिक यात्रा लगभग 30 साल तक चली थी। और इनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत भारत, अरब और तिब्बत से हुई थी। यात्रा के दौरान इन्होने जगह –जगह काफी अध्यन भी किया था। इसी समय नानक ने सिख धर्म को उजागर किया था। इनका मानना था की अगर इंसान को एक अच्छा जीवन व्यतीत करना है तो उसे आध्यात्म को स्थापित करना चाहिए। गुरु नानक के जीवन का आखिरी समय पंजाब के करतारपुर में गुजारा था।
इतिहास में मिलता है की गुरुनानक 11 साल के उम्र में ही विद्रोही हो गए थे। हिंदू धर्म में पैदा होने के बावजूद भी उन्होंने जनेऊ पहने से इंकार कर दिया है। उनका मानना था की जनेऊ पहने से कुछ नहीं होता है, इंसान को अपने गुणों का विकास करना चाहिए।
गुरुनानक ने बचपन से ही अध्यात्म का रास्ता अपना लिया था इसलिए 30 की उम्र में ही गुरुनानक परिपक्व हो चुके थे। परम ज्ञान अर्जित करने के बाद भी गुरुनानक ने अपना पूरा जीवन सत्य के प्रचार में लगा दिया। ईश्वर के प्रति समर्पण के कारण उन्हें लोग दिव्य पुरुष मानने लगे।
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