बता दें कि हिंदू धर्म में गायत्री की महिमा का वर्णन शास्त्रों में अनेक जगह किया गया है। वहीं मां गायत्री को वेदों का वेदमाता और विश्वजीत के नाम से भी जाना जाता है। कहते है कि गायत्री मंत्र विष्णु और महेश का सार है। माना जाता है कि ये भारतीय संस्कृति की जन्मदात्री भी है। हिंदू धर्म में सभी ऋषि-मुनि भी मां गायत्री का ध्यान लगाते हैं। माना जाता है कि यह संपूर्ण ब्राह्मण, जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश इन सब पांच तत्वों से मिलकर बनी है। इसलिए मां को पंचमुखो वाली भी कहां जाता है।
गायत्री जयंती को लेकर देश में कई तरह के मत है। कहीं गंगा दशहरा के अगले दिन यानी जेठ मास की एकादशी को, तो कुछ वहीं श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। जेठ शुक्ल दशमी-एकादशी को भी कुछ जगह गायत्री जयंती को मनाया जाता है।
तो आइए जानते है मां गायत्री जयंती से जुड़ी विशेष बातें...
गायत्री जयंती पूजा समय– 21 जून 2021 को ज्येष्ठ एकादशी के दिन
गायत्री जयंती तिथि प्रारंभ – 20 जून 2021 रविवार के दिन शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
गायत्री जयंती तिथि समाप्त – 21 जून 2021 सोमवार के दिन दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
गायत्री मंत्र-
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
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गुरु गायत्री मंत्र:
ऊँ गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्र्वरः।
गुरू साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥"
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥
ऊँ श्रीगुरवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।
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गायत्री मंत्र के फायदे:
हर एक मंत्र की तरह गायत्री मंत्र का जाप करने से भी अपनी ध्वन्यात्मकता के माध्यम से आपके शरीर, मन और आत्मा को पवित्र करता है। कहते है कि इस मंत्र का जाप करने से विभिन्न प्रकार की सफलता सिद्धियां और सम्पन्नता जैसे गुण मिलते हैं।
तो आइए आज मंत्र का अर्थ और शब्द समझते हैं।
गायत्री मंत्र को गुरु मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि बिना गुरु के साधना का फल देरी से प्राप्त होता है।
इन मंत्रों का जाप शांति में बैठकर करें। गायत्री मंत्र की तीन माला या कम से कम 15 मिनट तक मंत्र उच्चारण करें। ध्यान रहे कि मंत्र उच्चारण करते समय आपके होंठ हिलाते रहें लेकिन आपकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को सुनाई न दें। इसे व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होता है।
सनातन धर्म में वेदों की संख्या 4 है और सभी वेदों में गायत्री मंत्र का वर्णन किया गया है।
गायत्री मंत्र का जाप किसी भी समय किया जा सकता है , लेकिन इस मंत्र का जाप रात को लाभकारी नहीं माना जाता है। मान्यता के अनुसार रात के समय इस मंत्र का जाप करने से गलत परिणाम भी हो सकते है। इसलिए इस मंत्र को सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक किया जा सकता है।
इस मंत्र में 24 अक्षर साधनों की 24 शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करते हैं।
गायत्री मंत्र के साथ श्रीं का संपुट लगाकर जप करने से आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
छात्रों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। यह बात छात्रों के लिए स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि गायत्री मंत्र छात्रों के लिए लाभदायक है।
108 बार नियमित रूप से जाप करने से इस मंत्र के माध्यम से बुद्धि तेज और याददाश्त तेज होती है।
गायत्री उपासना का विधि-विधान
ब्रह्म संध्या- यह शरीर व मन को पवित्र व शुद्ध करने के लिए की जाती है और इस में पांच तरह के कृत्य करने होते हैं।
1. पवित्रीकरण- अपने बाएं हाथ में जल लेकर उशे दाहिने हाथ में ढंक लें और मंत्रोच्चरण के बाद जल को सिर और शरीर के पवित्रता भाव से छिड़क लें।
ऊँ अपवित्रः पवित्रों वा, सर्वास्थांगतो पि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्माभ्यन्तरः शुचिः।।
ऊँ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
2. आचमन- वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से 3 बार जल का आगमन करें। हर मंत्र के साथ एक-एक आचमन करें।
ऊँ अमृतोपस्तरणमासि स्वाहा।
ऊँ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ऊँ सत्यं यशः श्री मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।
3. शिखा स्पर्श औऱ वंदन- शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए महसूस करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा विचार ही यहां स्थापित रहेंगे। मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धि कुरुष्व मे।।
4. प्राणायाम- इस में श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ महसूस करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्र्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, वहीं छोड़ते समय यह महसूस करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियां, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकाल देती है। इस मंत्र का उच्चारण के साथ-
ऊँ भूः ऊँ स्वः ऊँ महः,ॐ जन ऊँ तपः ऊँ सत्यम्। ऊँ त्तसवितुवरिण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ऊँ।
5. न्याय- इस साधना का प्रयोग इसलिए किया जाता है ताकि शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंग पवित्र हो सकें। ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कार्य किया जा सके। इसके तहत बाएं हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों को जल में भिगोकर बताए गए स्थान को हर मंत्रोच्चार के साथ स्पष्ट करें।
ॐ वाङ् मे आस्येस्तु । (मुख को)
ऊँ नर्म प्राणी स्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ऊँ अक्ष्णोर्म चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)
ऊँ कर्णयोर्म श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)
ऊँ बाहोर्म बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)
ऊँ ऊर्वो में जो स्तु। (दोनों जंघाओं)
ऊँ आरिष्टानि मे डानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)
इन सब पांचों कृत्यों का भाव साधक में पवित्रता और प्रखरता की अभिवृद्धि हो साथ ही मलिनता-अवांछनीयता की निवृति हो।
मां गायत्री का ऐसे करें आवाहन-
अगर आप घर में पूजा कर रहे हैं तो महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री का प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा वेदी पर स्थापित करें, वेदी पर कलश रखें और घी का दीपक भी जलाएं और फिर मंत्र के माध्यम से माता का आवाहन करें।
मंत्रः ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमो स्तु ते।।
ऊँ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि।
मां का आवाहन के बाद माता को जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेघ आदि पांच पदार्थ प्रतीक के रूप में मां के समक्ष भेट करें।
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