कब मनाई जायेगी गंगा सप्तमी, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
हिंदू धर्म में गंगा नदी का बहुत ही खास महत्त्व है। यह मात्र नदी नहीं है बल्कि इन्हें माँ का दर्जा प्राप्त है इसलिए इन्हें गंगा माँ कहते हैं। यह सबसे पवित्र है इसीलिए हर पूजा-पाठ के कार्यो में गंगाजल का उपयोग अवश्य होता है। जिस दिन माँ गंगा की उत्पत्ति हुई थी वह दिन गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है और जिस दिन माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी वह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगीरथ ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए ब्रह्मा जी को माँ गंगा की उत्पत्ति के लिए मना लिया था तो ब्रह्मा जी को चिंता हुई कि क्या माँ धरती माँ गंगा का वेग और भार सह पाएंगी। उसके बाद ब्रह्मा जी ने भगीरथ को सुझाव दिया कि वे भगवान शिव के पास जाएं और भगीरथ ने अपने कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर इस बात के लिए मना लिया कि वह माँ गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दें ताकि गंगा स्वर्गलोक से सीधे धरती पर अवतरित न होकर उनकी जटाओं से होते हुए निकले जिससे माँ गंगा का वेग और भार कम हो सके।
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जिस दिन माँ गंगा की उत्पत्ति की थी और वह भगवान शिव की जटाओं में समायी थी वह दिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का दिन था। इसलिए हर वर्ष यह दिन गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा जयंती 8 मई के दिन मनाई जाएगी। वैसे तो सप्तमी तिथि की शुरुआत शनिवार के दिन 7 मई को दोपहर 2:56 से हो रही है और 8 मई रविवार की शाम 5:00 बजे तक रहेंगी। लेकिन उदयातिथि 8 मई के दिन पड़ रही है इसलिए गंगा सप्तमी 8 मई के दिन मनाई जाएगी। इस बार पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 2:38 मिनट से आरंभ होकर 2 घण्टे 41 मिनट तक रहेगा।
गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्त्व है। इस दिन देवी गंगा की विधि विधान से पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और साथ ही भक्तों के सभी दुखों का नाश होता है। इस दिन गंगा मंदिरों और सभी अन्य मंदिरों में भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से 10 पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। अब जानते हैं उस पौराणिक कथा के बारे में जिसमें बताया गया है कि माँ गंगा की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई थी।
राजा भगीरथ एक प्रतापी राजा थे। अपने पूर्वजों की जन्म-मरण के दोष से मुक्ति के लिए और उन्होंने माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी थी और उन्होंने कठोर तपस्या आरंभ कर दी थी।
उल्लेख मिलता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा ने धरती पर आने की बात कही परंतु उन्होंने राजा भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्गलोक से पृथ्वी पर उतरेंगी तो माँ पृथ्वी उनका वेग और भार सहन नहीं कर पाएंगी और रसातल में चली जाएगी।
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यह सुनकर भगीरथ सोच में पड़ गए। तब उन्हें ब्रह्मा जी ने बताया कि वह भगवान शंकर की उपासना करें और उनसे प्रार्थना करें कि वह माँ गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें और उसके बाद उनकी जटा से माँ गंगा धरती पर अवतरित हो जिससे उनका भार और वेग कम हो जाए। यह सुनकर भगीरथ भगवान शंकर की तपस्या में लीन हो गए और उनकी कठोर तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे कहा कि मांगों क्या वर मांगना है। तब भगीरथ ने उनसे अपने सब मनोरथ कहें। उसके बाद जब स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा उतरने लगी तो गंगा का घमंड चूर करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया। गंगा
छटपटाने लगी और फिर उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी तब भगवान शंकर ने उन्हें अपनी जटाओं में से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया जहाँ से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुई। इस प्रकार भगीरथ के कठोर तप के कारण युगों युगों तक बहने वाली और सभी पापों से मुक्त करने वाली माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ और राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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