कम ही लोग जानते हैं भगवान शिव के बैजनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश से जुड़ी ये कथा
बैजनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक प्रतिष्ठित धर्म स्थल है. ब्यास घाटी में पालमपुर से सौलह किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. बैजनाथ मंदिर का निर्माण आहुका और मनुका के नाम से किया गया था. मंदिर भगवान शिव का एक पवित्र स्थान था. बैजनाथ मंदिर में यह विशेष रूप से सुंदर प्राचीन शिव मंदिर,काफी प्रसिद्ध है. लेकिन इसी के साथ बिहार में मौजूद बाबा वैधनाथ धाम मंदिर देवघर, झारखण्ड में भी स्थित है इस कारण से ये दोनों स्थान काफी मतभेद में भी होते हैं जब 12 ज्योतिर्लिंगों में इनके स्थान को लेकर बात आती है.
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शिखर शैली में नवीं शताब्दी ईस्वी में पत्थर से निर्मित, यह मूर्तिकला और वास्तुकला का एक अच्छा मिश्रण है. मंदिर में पालमपुर और कांगड़ा दोनों से आसानी से पहुँचा जा सकता है. इसके गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. हर साल महाशिवरात्रि मेले के दौरान, तीर्थयात्री मेले और उत्सव के लिए बैजनाथ का दर्शन करते हैं. इस मंदिर की संरचना प्रारंभिक मध्ययुगीन उत्तर भारतीय शैली की कला की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है. इस तरह की संरचना को मंदिर की "नगर" शैली के रूप में जाना जाता था. वास्तु शैली को उड़ीसा शैली से लिया गया है, जो विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश की स्थिति में एक तरह नवीन रुप भी है. मंदिर के बाहरी स्थान पर हिंदू देवताओं के दिव्य प्राणियों और देवी-देवताओं के चित्रों के साथ विभिन्न स्थान भी हैं.
बैजनाथ मंदिर दिव्य शक्तियों का स्थान
माना जाता है कि इस मंदिर के पानी में बहुत से दिव्य गुण होते हैं, जो व्यक्तियों की बीमारियों को ठीक कर सकते हैं. इस वजह से भी बैजनाथ मंदिर में लगातार बड़ी संख्या में लोग आते हैं. शिवरात्रि का समय बहुत खास होता है तब यहां उत्सव होता है इसके साथ ही सावन माह के समय पर भी यहां विशाल संख्या में भक्त आते हैं, भगवान से कृपा पाने के लिए इस अवसर के बीच भक्त मंदिर जाते हैं. भगवान शिव के पूजा स्थल के अलावा, देवी-देवताओं को समर्पित कई अन्य छोटे पवित्र स्थान भी यहां मौजूद हैं.
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बैजनाथ मंदिर कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग के दौरान, रावण ने अजेय शक्तियों के लिए कैलाश में भगवान शिव की पूजा की थी. भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने हवन कुंड में अपने दस सिर चढ़ाए. रावण के इस असाधारण कार्य से प्रभावित होकर, भगवान शिव ने न केवल उनके सिर को पुन: सही किया, तथा रावण को अजेय और अमरता की शक्तियां भी प्रदान की थीं. इस वरदान को प्राप्त करने पर, रावण ने भी भगवान शिव से उनके साथ लंका जाने का अनुरोध किया.
शिव ने रावण के अनुरोध पर सहमति व्यक्त की और खुद को शिवलिंग में परिवर्तित कर लिया. भगवान शिव ने उन्हें शिवलिंग ले जाने के लिए कहा और उनसे कहा कि उन्हें रास्ते में शिवलिंग को जमीन पर नहीं रखना चाहिए. रावण दक्षिण की ओर लंका की ओर बढ़ने लगा और बैजनाथ पहुंचा जहां उसे रास्ते में लघुशंका की आवश्यकता महसूस होती है. एक चरवाहे को देखकर रावण ने शिवलिंग उन्हें सौंप दिया और खुद को राहत देने के लिए चले गए. शिवलिंग को बहुत भारी पाकर चरवाहे ने लिंग को जमीन पर रख दिया और शिवलिंग वहां स्थापित हो गया और वही आज अर्धनारीश्वर के रूप में शिवलिंग मौजूद है.
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