Dussehra 2022 : तीनों लोक में रावण जैसा महाज्ञानी-महापराक्रमी नहीं था कोई, भगवान राम को दिया था जीत का आशीर्वाद
रावण बहुत बड़ा ज्ञानी था। उसके आगे बड़े से बड़े ज्ञानी नतमस्तक हो जाते थे। रावण को मथुरा के कुछ सारस्वत ब्राह्मण अपने वंश के अनुसार रावण को एक सारस्वत ब्राह्मण मानते हैं। रावण के बारे में ऐसी ही कई मान्यताएं है। ये भी मान्यताएं मिलती है की पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु, दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण के रूप में पैदा हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पौत्र था अर्थात् उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था। विश्रवा की वरवर्णिनी , राका और कैकसी नामक तीन पत्नियां थी। रावण एक परम भगवान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, पंडित एवं महाज्ञानी था। रावण को सामवेद की जानकारी पूरी मुंहजबानी थी।
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इसके अलावा वास्तुशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, संगीत शास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र का वह ज्ञानी था। यू कह लीजिए की रावण परम ज्ञानी था। लंका के राजा परम ज्ञानी रावण तीनों लोकों में विख्यात थे। वाल्मीकि रामायण के प्रसंग में देखा गया है जिसमें हनुमान जी रावण के प्रताप को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
लंका नरेश रावण महाज्ञानी था, उसने कई शास्त्रों को भी लिखा था। हर साल दशहरा में हम सब रावण के पुतला को जलाते है, लेकिन इसके पीछे भी वजह है की बुराई का प्रतिक रावण का दहन कर के अच्छाई की जीत का जश्न मनाते है। हम सब रावण के एक ही रूप को जानते हैं,आइए इस रूप को देखते है, जो बहुत ही कम लोग जानते है।
महाज्ञानी रावण
रावण का सब एक साइड देखे है, बुराई का। लेकिन रावण महाज्ञानी के साथ ही वह दयालु भी था। रावण वास्तुशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, संगीत शास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र का ज्ञानी था। वह कविता और श्लोक भी लिखता था। इतना ही नहीं उसने अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। जो आज के समय में भी सब शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानते हैं।
रावण सामवेद में पारंगत था। इसके अलावा रावण ने ग्रंथों की भी रचना की थी। रावण संहिता और अरुण संहिता, अंक प्रकाश, इंद्रजाल, नाड़ी परीक्षा, कुमार तंत्र जैसे सभी ग्रंथ रावण की रचना है। रावण को कोई भी रुद्र वीणा में नहीं हरा सका। वो बहुत बड़ा संगीत ज्ञाता था।
कुल से ऋषि, कर्म से राक्षस
रावण के जन्म को लेकर बहुत सी बातें सुनने को मिलती हैं। आइए जानते हैं, रावण के पिता ऋषि विश्रवा श्रेष्ठ ऋषि थे। ऋषि विश्रवा महाज्ञानी थे। इनका दो विवाह हुआ था। इनकी पहली पत्नी का नाम वरवणिनी था, जिन्होंने कुबेर को जन्म दिया और दूसरी पत्नी का नाम केकेसी था, जिन्होंने रावण, कुंभकर्ण, शूर्पनखा और विभीषण को जन्म दिया था। बचपन से ही रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। पिता ऋषि विश्रवा ने ही उसे शास्त्रों का ज्ञान दिया और महाज्ञानी बनाया।
बलशाली रावण
रावण अत्यंत बलशाली था। उसका मानना था की तीनों लोकों में उस जैसा कोई बलशाली नहीं हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार उसके पास पशुपति अस्त्र भी था, जो उस समय सबसे खतरनाक माना जाता था। इसके अलावा वरुणास्त्र, आसुरास्त्र, मायास्त्र, गंधर्वास्त्र, नागास्त्र प्रमुख थे। लंका नरेश रावण हर तरह के अस्त्र–शस्त्र था। उसने कई शस्त्रों में महारथ हासिल की थी।
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
यमराज और इंद्र पर हासिल की थी जीत
रावण तीनों लोकों में अपना साम्राज्य बनाने की कोशिश की थी। उसका यश तीनों लोकों में विख्यात था। उसमें जितने युद्ध लड़े थे, सब युद्ध में वही विजयी रहा है। शास्त्रों में चार युद्धों का विशेष तौर पर वर्णन किया गया है। इनके मुताबिक रावण का पहला युद्ध सौतेले भाई कुबेर के साथ हुआ था। युद्ध में रावण का पराक्रम देख कर कुबेर लंका छोड़ भाग गए और तिब्बत में शरण ले ली।
मान्यता है कि रावण ने इसी युद्ध में कुबेर का पुष्पक विमान छीन लिया था। यहां तक कि रावण ने तीनों देव स्थान पर भी अपना कब्जा करने पहुंच गया था। जब रावण यमलोक लोक पहुंचा तब ब्रह्म देव के आशीर्वाद की वजह से युद्ध में यमलोक जीत लिया। इस तरह करके रावण ने कई यमलोक में कई देवों को हराया। रावण ने इंद्र देव पर भी विजय पाई। रावण का देव लोक पर भी विजय पाई साथ ही पृथ्वी पर भी लगभग राजाओं के राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। सब पर विजय के बाद भी अंत में राम के हाथों रावण का संहार हुआ।
राम को दिया था विजयी भव का आशीर्वाद
कई ग्रंथों में मिलता है की रावण ने ही श्री राम को विजय होने का आशीर्वाद दिया था। जैसे महर्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखी गई कंब रामायण के मुताबिक रावण ने ही राम को विजयी होने का आशीर्वाद लिया था। दरअसल सेतु बनाने से पहले श्री राम ने यज्ञ करने का संकल्प किया। इसे संपन्न कराने के लिए पुरोहित की जरूरत थी, कंब रामायण के मुताबिक जामवंत रावण के पास प्रस्ताव लेकर जाते है और वह इसे सहर्ष स्वीकार करते है। रोचक प्रसंग ये है कि इस यज्ञ को संपन्न कराने के लिए रावण मां सीता को भी साथ लाता है, क्योंकि शास्त्रों के मुताबिक पत्नी के बिना की गई पूजा संपन्न नहीं मानी जाती।
पूजन के बाद रावण राम को विजयी होने का आशीर्वाद भी लिया और मां सीता को लेकर वापस लंका चला जाता है। कंब रामायण की तरह ही पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित जैसे हिंदू ग्रंथों और कई जैन ग्रंथों में रावण के इन्हीं अलग-अलग रूपों का जिक्र मिलता है। हर ग्रंथों में रावण की छवि अच्छी ही बताई गई। किसी ग्रंथ में तो ये भी बताया गया है की रावण जानबूझ कर सबसे अंत में श्री राम से लड़ने गया। क्योंकि अंत में वो भी श्री राम हाथों अपनी मुक्ति चाहता था।
राम के हाथों ही मुक्ति चाहता था रावण
मानस के प्रसंगों से ये स्पष्ट है कि रावण मुक्ति सिर्फ राम के हाथों की चाहता था। अपने मरने से पहले अपने सारे वंश और कुल को भी राम के हाथों मुक्ति दिलाई। तुलसीदास ने बताया है कि रावण बाहरी तौर पर राम से शत्रु भाव रखते हुए भी हृदय से उनका भक्त था। उसका मानना था कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो क्यों न उनसे ही मुक्ति पाऊं। कई कवियों ने तो अपने ग्रंथो में सिर्फ रावण के अवगुण बताया है।
रावण का पहनावा
रावण के पहनावे का कहीं स्पष्ट तौर पर तो उल्लेख नहीं है, लेकिन वाल्मीकि रामायण में कहीं-कहीं हुए जिक्र के अनुसार उस समय पुरुष अंग वस्त्र धारण करते थे जो कमर से कमर से लिपटकर कंधे तक होता था। कमर के नीचे धोती धारण की जाती थी, जिसे परिधान कहते थे। इसके अलावा रावण त्रिपुंड धारी था। वह हाथों में गले में, कानों में रत्नजड़ित जेवरात धारण करता था।
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